Thursday, December 25, 2014

आप विजेता हें इसलिए कि आपने हार के भय पर विजय प्राप्त की है.

कोई एक नहीं;आप सभी विजेता हें,क्यों ?
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
आप विजेता हें इसलिए कि आपने हार के भय पर विजय प्राप्त की है.
जो हार के डर से प्रतियोगिता में शामिल ही नहीं हुए वे तो पहिले ही हार गए,वे हार से बचे कहाँ ?
वे हार गए हें इस बात का निर्णायक कौन है,किसने दिया उनकी हार का निर्णय ?
स्वयं उन्होंने !
उन्हें किसी और ने न तो हराया है और न ही उनके हारने का निर्णय सुनाया है,वे तो स्वयं ही हार  गए हें.
जो हार से डर गया वह हार गया,वह हार गया सदा के लिए.
अब उसके विजयी होने के कोई अवसर ही नहीं क्योंकि वह कभी प्रतियोगिता के मैदान में उतरेगा ही नहीं तो जीतेगा कब और कैसे ?
जो प्रतियोगिता में शामिल हुआ है उसमें जीत का जज्बा है,बस इसीलिये वह विजेता है.
जो प्रतियोगिता में जीतता है मात्र उसे ही विजेता कहना और मानना ठीक नहीं,इस प्रकार तो विश्व में मात्र एक ही विजेता कहलायेगा,तो क्या विश्व में दूसरे सब हारे हुए हें,हारने योग्य  ही हें ?
अरे!जो ५ गेम में से ३ में जीत जाता है और २ में हार भी जाता वह भी विजेता घोषित कर दिया जाता है.
जो २ बार हार गया वह भी विजेता ? वह कैसा विजेता ?
जिसने दो बार उस कथित विजेता को हराया वह हारा हुआ कैसे ?
दरअसल प्रतियोगिता की जीत हार में सिर्फ खेल सम्बन्धी योग्य्ता ही नहीं निर्णायक नहीं होती वल्कि अन्य भी अनेकों कारक काम करते हें;उसका स्वरूप ही ऐसा है कि सामान योग्यता वाले अनेकों प्रतियोगियों में से सिर्फ एक जीतता है और अन्य सभी हारे हुए घोषित कर दिए जाते हें,यह जरूरी नहीं कि वे विजेता घोषित किये गए व्यक्ति से किसी मायने में कम हों.
एक बात और – “प्रतियोगिता के विजेता के समक्ष भी प्रतिपल एक चुनौती होती है,विजेता बने रहने की चुनौती,उसे हर प्रतियोगिता में मात्र बने ही नहीं रहना होता है वरन हर बार जीतते भी रहना होता है,एक बार प्रतियोगिता से भागा या हारा तो हार गया.
उचित यही है कि हम प्रतियोगिता में शामिल हों और प्रतियोगिता में बने रहें.

-part of speech given at the time of inauguration of annual games in ptdjs mahavidhyalay , jaipur  

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