दुनिया में मनमुटावों , विवादों और तकरारों का सबसे बड़ा कारण यह है की हम हमेशा एक पक्ष बनकर सोचते हें .
यदि हम स्वयं एक पक्षकार की नजर से नहीं वरन एक न्यायाधीश की नजर से गौर करें तो तो विवाद रहेगा ही नहीं .
जब हम एक पक्षकार की नजर से विचार करते हें तब न्याय का विचार नहीं करते हें मात्र अपने हित का विचार करते हें , तब हमें उचित और अनुचित का ख्याल भी नहीं रहता , बस एक मात्र अपना सीमित और तात्कालिक हित ही दिखाई देता है .
जब हम एक तटस्थ न्यायाधीश की नजर से देखते हें तब हमें सामने वाले के तर्क भी समझ आते हें , उसका हित और अहित भी दिखाई देता है , उसकी परिस्थिति का ज्ञान होता है तब हम स्वयम ही इस निष्कर्ष पर पहुँच जाते हें की जो हो रहा है वही सही है और व्यर्थ के विवाद मिट जाते हें .
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