Saturday, December 27, 2014

जिसे सौभाग्य समझा जाता है वह कहीं दुर्भाग्य तो नहीं होता न ?

जिसे सौभाग्य समझा जाता है वह कहीं दुर्भाग्य तो नहीं होता न ?
गुरु, माता-पिता और शुभचिंतक लोग जिसका लिहाज करने लगें, अच्छा-बुरा सिखाना छोड़दें, सलाह देने से झिझकने लगें, अपने मन की बातें न कहें, उनकी गल्तियों पर परदा डालने की कोशिश करने लगें, अन्याय अनीति और अनाचार को वर्दाश्त करने लगें, ऐसे स्वच्छंद लोग सौभाग्शाली माने जायेंगे या बदनसीब ?
अरे! डाक्टर जिसकी बीमारी को संरक्षण प्रदान करने लगे उससे बड़ा दुर्भाग्यशाली मरीज और कौन होगा.
जिस प्रकार हम स्वयं डाक्टर के पास चलकर जाते हें, उसकी विनय करते हें, दक्षिणा देते हें और अपनी बीमारी, अपनी कमजोरी उसके समक्ष प्रकट करते हें, उसकी सलाह को ध्यान से सुनते हें, उसके द्वारा बतलाया गया उपचार सावधानी पूर्वक करते हें, अत्यंत कष्ट उठाकर भी उसके द्वारा बतलाया गया कठिन से कठिन परहेज भी पालते हें और अन्तरंग से उसके प्रति कृतज्ञ होते हें, प्रकट में घोषणा पूर्वक उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हें, उसी प्रकार अपने गुरु, माता-पिता और शुभचिंतकों के समक्ष अपनी शंकाएं, द्विविधायें, कष्ट, भूलें, कमजोरियां और अपराध प्रकट करके विनय पूर्वक उनसे सलाह लेनी चाहिए, सलाह का पालन करना चाहिए और उनकी सलाह के लिए उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिये और प्रकट में भी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए. ऐसे लोगों का उपकार भी किसी डाक्टर से किसी भी मायने में कम नहीं है जो हमें हमारे चरित्र और मानसिकता को रोगी होने से बचाते हें और रोगी होजाने पर उसका इलाज करते हें.
अपनी भूल बतलाने वाले के प्रति क्रोध करना और द्वेष पालना उचित नहीं है, ऐसे लोग नष्ट करने लायक नहीं संरक्षित करने योग्य होते हें.
अरे ! जो लोग हमारी भूलें निकालकर हमें भूल रहित बनाने का कार्य करें वे हमारी दुश्मन हुए या उपकारी ?
जिस प्रकार हम अपना फेमिली डाक्टर रखते हें उसी प्रकार हमें अपना पारिवारिक शुभचिंतक सलाहकार भी रखना ही चाहिए.
जिसे कोई दर्पण दिखाने वाला न हो, जिसकी भूलें बतलाने वाला कोई न बचा हो, कोई ऐसा न हो जो गलत काम करते हुए हाथ पकड ले, समझ लो उसके बुरे दिन आगये.
अपराध उनका भी कम नहीं है जो लाड-प्यार, सहानुभूति, आशा, इक्षा, अपेक्षा, भय, लोभ, उपेक्षा, इर्ष्या, भेदभाव या द्वेष में पड़कर अपने बच्चों, शिष्यों या निकटतम सम्बन्धियों को सही वक्त पर सही और उचित सलाह देने से बचने लगते हें. आखिर वे यह काम नहीं करेंगे तो कौन करेगा ?
क्या उनका यह व्यवहार उनके कर्तव्यपालन के प्रति उनकी उपेक्षा या लापरवाही नहीं है ?
यह जुल्म ही नहीं जुर्म भी है 

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