Friday, April 24, 2015

यदि हम चाहते हें कि हमारे साथ भद्रता का व्यवहार हो तो हमें स्वयं भद्र बने रहना होगा.

यदि हम चाहते हें कि हमारे साथ भद्रता का व्यवहार हो तो हमें स्वयं भद्र बने रहना होगा.
-    परमात्म प्रकाश भारिल्ल
यथार्थ तो यथार्थ हें और वे यथार्थ ही रहेंगे, यथार्थ बदलते नहीं; भद्रता से नहीं और अभद्रता से भी नहीं; पर हमारी भद्रता प्रतिपक्षी के बार की धार को कुंद कर देती है, कभीकभी तो इस हद तक कि बार, बार ही न लगे, पुष्प बर्षा सा लगे.
सामान्यतया किसी को यह अहसास भी नहीं होता है कि किस प्रकार उसके व्यवहार की भद्रता ने जीवनभर उनकी रक्षा की है.
जगत ने उनके दोषों की अनदेखी है, स्वयं का नुकसान करके भी उनके प्रति अपने व्यवहार में मृदुता बनाए रखी है.
उनकी मृदुता ने उनपर संभावित एवं अपेक्षित अनन्त आक्रमणों को रोका है, इस हद तक रोका है कि वह स्वयं ही अपने बारे में भ्रमित धारणाओं के साथ जीने लगा है.
उसे लगने लगता है कि वह तो गुणों की खान है और उसमें दोष तो हें ही नहीं, या कदाचित वह मानने लगता है कि जगत इतना भोला है कि उसके अभिनय में बहल जाता है और जगत के लोगों में मेरे अन्तरंग को पहिचानने की सामर्थ्य और द्रष्टि ही नहीं है.

होता यह है कि जगत के लोग यह सोचते हें कि यदि यह सभ्यता के आवरण में अपनी पशुता को छुपाये हुए है तो हम क्यों व्यर्थ ही उसे अनावृत करने (उधाड़ने में) में अपना योगदान करें, कुछ लोगों को तो सज्जन बने रहने दें, भले ही अभिनय ही सही.

यदि हमें जगत की ओर से अपने प्रति भद्रता की अपेक्षा है तो हमें अपने व्यवहार की मृदुता कायम रखनी चाहिए.

यदि हमें जगत के लोगों की अपने सम्बन्ध में धारणा सम्बन्धी अपना भ्रम तोड़ना ही हो बस एक बार अपनी भद्रता के कवच से बाहर निकल कर देखिये, पलभर में ही आपके व्यक्तित्व के सम्बन्ध में लोगों की धारणा का सत्य सामने आजायेगा.

आप किसी के इस कथन को असत्य मानने की भूल कभी मत कीजिये कि -मुझसे बुरा कोई नहीं होगा” कदाचित मात्र यही कहते वक्त वे सत्य बोल रहे होते हें.


सुन्दर त्वचा का बाहरी आवरण हमारे अन्दर व्याप्त मलिनता को मात्र छुपाये ही रहता है, वरना जानता कौन नहीं कि इस सलोनी त्वचा के आवरण से ढंके अन्तर में आपकी हकीकत क्या है ?

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