Wednesday, August 12, 2015

परमात्म नीति (22) - संचित धन संकटों को आमंत्रित करता है, संकटों से बचाता नहीं है.

- परमात्म नीति (22)

- संचित धन संकटों को आमंत्रित करता है, संकटों से बचाता नहीं है.









- श्रमसाध्य तो धन का उपयोग करना है, संचय करना नहीं. काम नहीं आया धन संचित तो अपनेआप ही हो जाता है. हाँ ! संचित धन की रक्षा करना अवश्य श्रमसाध्य है और व्ययसाध्य भी 

संचित धन तो कभी काम नहीं आता है. वर्तमान में हम स्वयं उसे काम नहीं लेकर संचित कर लेते हें और संकट तो आता ही तब है जब संचित धन नष्ट हो जाता है, तबतो वह काम आने का प्रश्न ही नहीं है.
तो क्या संचित धन की उपस्थिति संकट से बचने के काम आती है?
यह भी सही नहीं है, बहुधा तो यह संकटों को स्वयं ही आमंत्रित करती है. यदि हमारे पास संचित धन हो तो (मित्र) लोगों को व्यर्थ ही शत्रु बनाने के काम आता है, क्योंकि वे उसे (संकट या जरूरत के नाम पर) पाने की आशा करने लगते हें और न मिलने पर असंतुष्ट हो जाते हें.
यूं भी धन का संचय हमारी शक्ति का शोषण करता है क्योंकि धन कमाना ही नहीं धन की रक्षा भी एक प्रयत्न साध्य कार्य है.


उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 

यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

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