Wednesday, March 15, 2023

jaipur, thursday , 13  nov  2015  नवबर्ष , 9. 05  am 

यह बर्षों का आना जाना 
निश्चित है अविरल श्रष्टी का क्रम 
पर हम आगे बढ़ पाये हैं 
कोई ना पाले ऐसा भ्रम 

चले जहांसे वहीं खड़े हम 
बस एक दिवस ही तो बीता है 
मेरा घट जो कल रीता था 
वह घट तो अबभी रीता है 

किस तरह इसे उपलब्धि मानूं 
किसलिए करूं मैं अभिनन्दन 

इसी तरह इक और बीतेगा 

जिसका मैं अभिनन्दन करता 
तत्क्षण विलीन हो जाती है 
प्रत्येक प्रातवेला संध्या को 
अंधियारों में खो जाती है 

प्रतिपल नितप्रति अभिनन्दन क्रन्दन
करते करते घट रीतेगा 
बर्ष मास हफ्ते बीते ज्यों 
क्या इसी तरह जीवन बीतेगा

किस तरह करूँ मैं क्यों करता हूँ 
नए बर्ष का अभिवादन 
क्या हो पायेगा अबभी मुझसे 
कर्तव्यों का संपादन 

यदि नहीं किया है मैंने अबतक
अपने लक्ष्यों का निर्धारण 
नहीं किया रेखांकित मैंने 
वह पथ वह साध्य-साधन 

क्या नहीं पुन: यह व्यर्थ रहेगा 
और एक कल का पाना 
फिर एकबार सूर्योदय होना 
एक और दिन ढल जाना 
 


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