Wednesday, March 15, 2023

अबतो "मौन" ही शरण है (लिखना है)

jaipur, monday 8th nov. 2015, 8.20 am 
अबतो "मौन" ही शरण है 
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

सत्य बोलना अब संभव नहीं है और झूंठ मैं बोलना नहीं चाहता. 
चाहत से भी क्या होता है, दरअसल मैं झूंठ बोल ही नहीं सकता हूँ, मुझमें वह योग्यता ही नहीं है.
सत्य बोलने से मात्र हम स्वयं ही संकट में नहीं पड़ते हें वरन हमारे सभी संगीसाथियों पर भी तो इसका बुरा प्रभाव पड़ता है न !
हम अपने संकट से तो निपट सकते हें, उसके परिणाम भी भुगत सकते हें पर हमारे साथियों का क्या होगा ?
दरअसल झूंठ बोलना आज व्यावहारिकता का  और चोरी करना (बौद्धिक संपदा की चोरी या करचोरी ही सही) स्मार्टनेस का प्रतीक बन गया है. 
भ्रष्टाचार तो आजकी जीवनशैली है, यहतो वह जीवनवायु है जिसके बिना कुछ पलभी जीना संभव नहीं है.
अब ये सब शर्मनाक प्रवृत्तियों की श्रेणी में नहीं आते हें. जो यह नहीं कर सकता है  वह out of date माना जाने लगा है.
पहिले तो मात्र न्यायालय ही ऐसे स्थान हुआ करते थे जहां झूंठ को सच और सच को झूंठ साबित करना नागरिकों का कानूनी अधिकार था पर आजतो हर जगह इसका बोलवाला है.
पहिले साहूकार और बनिए की दूकान बेईमानी का आवास मानी जाती थी और बैंक इमानदारी के संरक्षक पर आजतो बैंक इस सफाई से आपकी जेब काटने लगे हें कि आपको अहसास भी नहीं होता है. आखिर बड़े -बड़े धुरंधर MBA की पदवीधारी लोग उनके लिए ऐसी योजनायें तैयार करते हें कि आप समझ ही नहीं पाते हें कि  आपकी कब कट गई ?
जो बैंक आपकी संपदा के संरक्षक माने जाते थे वे ही आज भक्षक बनते जारहे हें. 
और वीमा ?
वह वीमा जो आपकी सुरक्षा की गारंटी था, संकट के समय आपके काम आने के लिए जिसका अवतार हुआ था आज वह स्वयं किसी महासंकट से कम नहीं.

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