Friday, March 17, 2023

यहाँ कौन प्रताड़ित हुआ नहीं - कविता - अपूर्ण

jaipur, saturday, 7th nov. 2015 7.45 am


यहाँ कौन प्रताड़ित हुआ नहीं 
यह जग ऐसा है 
जो भीड़ में शामिल हो न सके 
वह ऐसा वैसा है 

ना आँख मूंदकर करे कभी कुछ 
फूंकफूंककर चलता है 
ना मात्र कभी अनुशरण करे जो 
सोचसमझकर करता है 

ना भेड़चाल में शामिल हो जो 
अपना मार्ग बनाकर चलता है 
कैसे हो वर्दाश्त किसी को 
वह सबकी नजरों में खलता है 

निज द्रष्टि से देखे दुनिया को 
निजकी नीति पर चलता है 
निज निर्णय पर अटल रहे जो 
निज के निर्णय करता है 

स्वप्न भी जिसके अपने हें 
जिसकी मंजिल अपनी है 
जहां नहीं प्रतिरोध किसी का 
क्योंकि कल्पना अपनी है 

विधिविधान भी जिनका अपना 
जिनकी अपनी मर्यादा 
न्याय नीति नैतिकता जिनकी 
बस तय करती मर्यादा 

नहीं डराते कभी किसी को 
नहीं किसी से डरते जो 
उचित लगे जो वे करते हें 
अनुचित कृत्य न करते जो 

बाधाओं से कभी न रुकते 
उन्हें रोंदकर बढ़ जाते 
अन्य कोई जो सोच सके ना 
ऐसा वे कुछ कर जाते 


बिना विचारे जो सबकी 
धारा में बह जाते 
बड़ी भीड़ में शामिल हो जो 
सिन्धु के बिंदु हो जाते 

सबके उठने पर उठ जाते 
सबके सोने पर सोते हें 
सबके हंसने पर जो हंसते 
सबके रोने पर रोते हें 

नहीं विचारें अधिक कभी जो 
बस हाँ में हाँ भर देते हें 
जिसने कहा जो करने को 
तुरत फुरत जो कर देते हें 


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