अफ़सोस ! सरकार ने रूखा सा जबाब देकर टीम अन्ना को बाहर का रास्ता दिखा दिया -
यदि अन्ना की बातें सही हें तो फिर देरी क्यों ?
जो काम कुछ महीनों में किया जा सकता है ,एक संत की जान बचाने के लिए कुछ दिन या घंटों में क्यों नहीं किया जा सकता ?
प्रक्रिया जनता के लिए है या जनता प्रक्रिया के लिए ?
सभी दलों ने एक स्वर से कहा -" जनलोकपाल मान्य नहीं "
देखो कैसे एक हो गए , इस मुद्दे पर सारे
आज परख लो कैसे हें सब , ये नेता लोग हमारे
लोकपाल ना दिलबा सकते , कैसे ये घबराते हें
सिर्फ एक इस मुद्दे पर , ये सब एक हो जाते हें
शर्मनाक यह शर्मनाक है , यह है अत्याचार
एक स्वक्ष्य शासन की इक्षा, ना दर्शाती सरकार
सभी दलों का इस मुद्दे पर , यह स्पष्ट विचार
क्या हक़ है इस जनता को , बनने का थानेदार
सभी दलों के नेताओं का विचार -
कहो कहो कैसे संभव है , हम चोर ये थानेदार
खुले आम रिश्वत खाने का , छोड़ें कैसे अधिकार
नागनाथ को ठुकराओगे तो , ये सांपनाथ तैयार
हम जायेंगे तो वे आयेंगे , हम सब मौसेरे यार
जनता क्या चाहती है -
ना मांगते हम रोटियाँ , ना नौकरी सरकार से
स्वमान से जीने का हक़ तो , दिलादो प्यार से
बना इक कानून दिलाओ,छुटकारा अत्याचार से
कह देते हें ना टकराओ , इस मानव दीवार से
हमने तुमको गादी दी है , हम माटी भी दे सकते हें
अंग्रेजों से आजादी लेली , तो तुमसे भी ले सकते हें
कदम कदम लूटे गए हम , थक गए अत्याचार से
खैरात नहीं हम न्याय मांगते ,अपनी ही सरकार से
क्यों ना छुटकारा दिलबा देते , हर कुर्सी के खटमल से
कदम कदम पै रक्त चूसते,हमको छलते सत्ता वल से
कर्तव्य की कीमत बसूलें , अधिकार भी सब बेच डाले
हर कदम पर लुटते -पिटते , घायल जन मन भोले भाले
था कौन जानता इक दिन ये , ये दिन दिखलायेंगे
जिनको पहरेदार बनाया , वे मालिक बन जायेंगे
ऐसे रूखा रुख अपनाकर,बाहर का मार्ग दिखायेंगे
कोई बात नईं पांच साल में,फिर पास हमारे आयेंगे
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