Friday, September 2, 2011

सभी दलों ने एक स्वर से कहा -" जनलोकपाल मान्य नहीं "

अफ़सोस ! सरकार ने रूखा सा जबाब देकर टीम अन्ना को बाहर का रास्ता दिखा दिया -

यदि अन्ना की बातें सही हें तो फिर देरी क्यों ?

जो काम कुछ महीनों में किया जा सकता है ,एक संत की जान बचाने के लिए कुछ दिन या घंटों में क्यों नहीं किया जा सकता ?

प्रक्रिया जनता के लिए है या जनता प्रक्रिया के लिए ?

सभी दलों ने एक स्वर से कहा -" जनलोकपाल मान्य नहीं "

देखो कैसे एक हो गए , इस मुद्दे पर सारे

आज परख लो कैसे हें सब , ये नेता लोग हमारे

लोकपाल ना दिलबा सकते , कैसे ये घबराते हें

सिर्फ एक इस मुद्दे पर , ये सब एक हो जाते हें

शर्मनाक यह शर्मनाक है , यह है अत्याचार

एक स्वक्ष्य शासन की इक्षा, ना दर्शाती सरकार

सभी दलों का इस मुद्दे पर , यह स्पष्ट विचार

क्या हक़ है इस जनता को , बनने का थानेदार

सभी दलों के नेताओं का विचार -

कहो कहो कैसे संभव है , हम चोर ये थानेदार

खुले आम रिश्वत खाने का , छोड़ें कैसे अधिकार

नागनाथ को ठुकराओगे तो , ये सांपनाथ तैयार

हम जायेंगे तो वे आयेंगे , हम सब मौसेरे यार

जनता क्या चाहती है -

ना मांगते हम रोटियाँ , ना नौकरी सरकार से

स्वमान से जीने का हक़ तो , दिलादो प्यार से

बना इक कानून दिलाओ,छुटकारा अत्याचार से

कह देते हें ना टकराओ , इस मानव दीवार से

हमने तुमको गादी दी है , हम माटी भी दे सकते हें

अंग्रेजों से आजादी लेली , तो तुमसे भी ले सकते हें

कदम कदम लूटे गए हम , थक गए अत्याचार से

खैरात नहीं हम न्याय मांगते ,अपनी ही सरकार से

क्यों ना छुटकारा दिलबा देते , हर कुर्सी के खटमल से

कदम कदम पै रक्त चूसते,हमको छलते सत्ता वल से

कर्तव्य की कीमत बसूलें , अधिकार भी सब बेच डाले

हर कदम पर लुटते -पिटते , घायल जन मन भोले भाले

था कौन जानता इक दिन ये , ये दिन दिखलायेंगे

जिनको पहरेदार बनाया , वे मालिक बन जायेंगे

ऐसे रूखा रुख अपनाकर,बाहर का मार्ग दिखायेंगे

कोई बात नईं पांच साल में,फिर पास हमारे आयेंगे


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