Saturday, September 24, 2011

ललचाये मन , घर फूंक डालूँ , जग की दिवाली देखकर


ललचाये मन , घर फूंक डालूँ , जग की दिवाली देखकर 
ठहर  जाता फिर मगर बो , भयानक रात काली देखकर 
हर  एक दिन के बाद , हर दिन , इक रात ऐसी आयेगी 
इक शमा   तो  ठीक  है , अंधियारे में डगर दिखलाएगी 
पर यदि फूंक डालूँ आशियाना , जग जगमगाने के लिए 
तब कहाँ आश्रय पाउँगा मैं , हर रोज सर छुपाने के लिए 

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