स्वीकार किया अब हमने सच को ,किया देर से सही किया
जो अपना तो हुआ कभी ना , उसको ही निज माना था
क्योकि निज को जाना ना था , स्वरूप ना पहिचाना था
पाप उदय में दूर हुए जो ,तब जाना ये सब तो पर ही थे
पापोदय में साथ हुए , बे भी पर थे , अब चले गए
इस तरह जो वक्त देखकर , आते जाते रहते हें
वे तो पर हें,क्या जग में उनको,कोई अपना कहते हें
जो सदा रहे,बो मेरा,मैं हूँ ,जो आता जाता कभी नहीं
मैं नहीं अधूरा , मैं सम्पूरण , आज , अभी और यहीं
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