"गल्तियाँ" क्या ,क्यों और कैसे ? (14)
तू धूर्तता का त्याग कर , यदि चाहता तू प्यार है
यह काठ की हांडी अरे , ना चड़े सौ सौ बार है
हर एक हुई जो भूल हमसे , सबक लेना चाहिए
इससे अधिक क्या लाभ कि,त्रुटिहीन ही हो जाइये
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