Friday, November 11, 2011

"पर से विमुख जो आत्म सम्मुख,निज भाव साधक संत हैं"-संसार में होते हुए संसार से अलिप्त , आत्म साधना में रत और अन्यों को आत्म कल्याण का मार्ग दिखाने बाले अद्भुत योगी कैसे होते हेँ -


संसार में होते हुए संसार से अलिप्त , आत्म साधना में रत और अन्यों को आत्म कल्याण का मार्ग दिखाने बाले अद्भुत योगी कैसे होते हेँ -   
              
पर से विमुख जो आत्म सम्मुख,निज भाव साधक संत हैं
जग से परे , निज में अरे , विचरण करें निर्ग्रन्थ हैं 
होकर विरागी ,  महाभागी, निज की पिपासा वलवती
वन को चले , वनकर चले, जो भाग्यशाली जिन यति

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