Thursday, December 1, 2011

Parmatm Prakash Bharill: क्यों व्यर्थ विकल्प जल में उलझा रहता है . तेरी चाह...

Parmatm Prakash Bharill: क्यों व्यर्थ विकल्प जल में उलझा रहता है . तेरी चाह...: क्यों व्यर्थ विकल्प जल में उलझा रहता है . तेरी चाहत से कुछ भी नहीं होता ! अरे ! तू अपनी चाह के अनुसार संसार को बदलना चाहता है ,परिणमाना चा...

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