Saturday, March 17, 2012

अब तो छल त्याग दे और अपने अस्तित्व को स्वीकार कर .


क्या कहता है क़ि " आत्मा फातमा किसने देखा "
फिर तू कौन है ?
क्या यह देह तू है ?
जिस दिन मृत्यु हो जाती है तब लोग कहते हें " परमातमजी नहीं रहे "
इसका मतलब अब जो नहीं रहा बो तू था .
पर यह देह तो सामने पडी है , तब क्या नहीं रहा ?
देह तो पडी है पर उसमें आत्मा नहीं रहा .
इसका मतलब यह देह तू नहीं जिसे तू सब ही कुछ मान बैठा है .
तू तो वह आत्मा है जिसे तू जानता ही नहीं , पहिचानता ही नहीं , जानना ही नहीं चाहता .
क्या यह तेरा कपट नहीं है ,स्वयं अपने प्रति .
क्या यह तेरी घोर उपेक्षा नहीं है , स्वयं अपने प्रति .
क्या यह तेरा अत्यंत क्रोध नहीं है , अपने आत्मा के प्रति .
क्या यह धोखा नहीं है , स्वयं अपने आप के प्रति .

दिन रात तू जिस देह संभाल में व्यस्त रहा वह तो पडी है , पर किस काम की ?
कोई जिसे एक पल भी अपने घर में रखना नहीं चाहता , क्या वही तू था  ?
अब तो छल त्याग दे और अपने अस्तित्व को स्वीकार कर .
it is never late .
जब जागो तभी सबेरा 
अपने को जान , अपने को पहिचान , तन्मय होजा .
तू स्वयं भगवान है  


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