हमारे अपने जनप्रतिनिधियों को एक आह्वान -
आप हमारे सौभाग्य बनना चाहते हें या दुर्भाग्य यह निर्णय आपको करना है
हमने अपने माता-पिता को चुना नहीं है पर आपको हमने चुना है , अपना सौभाग्य मानकर चुना है .
हमने अपना वर्तमान और भविष्य भी आपके सुपुर्द कर दिया है .
यदि हो सके तो इस विशाल जन समूह के विशवास का खून मत कीजिये .
ये , बो , हम सब आपके उसी स्नेह और संरक्षण के हकदार हें जो आपके अपने परिजनों को सहज ही प्राप्त है .
हमने तो आपको चुन लिया है अब " चुनिन्दा " बनना आपकी जबाबदारी है .
आप हमारी भूल न बनें , इसमें आपकी भी हार है .
हमारे सौभाग्य में आपका भी सौभाग्य है .
आपको और क्या पाना है ?
क्या पाना आपको शेष रह गया है ?
अरे ! इस विशाल जन समूह ने आपको अपना भाग्य विधाता बना लिया है , अपना भगवान बना लिया है , इससे अधिक किसी को और क्या चाहिए ?
अरे ! भगवान को भी किसी ने चुना नहीं है पर आपको चुना है .
आप नहीं ! पर वे लोग जो गलत तरीके अपनाकर सिर्फ दौलत बटोरने में ही व्यस्त रहते हें , क्या उन्होंने कभी विचार भी किया है क़ि यह सब किसके लिए ?
क्या अपने उन स(क)पूतों के लिए , जिन्हें आपने चुना नहीं हें , जिन्होंने आपको चुना नहीं है .
शायद कभी चुन भी न पायें , क्योंकि वे हम जैसे नादान थोड़े ही हें !
वे तो आपको बखूबी जानते हें , पहिचानते हें , आप जैसे हें वैसा ही पहिचानते हें .
आप उनके लिए भ्रष्ट होते (बनते) हें और वे आपको भ्रष्ट जानकर , मानकर अस्वीकार कर देते हें . उन्हें आपके प्रति सन्मान नहीं होता , आदर नहीं होता .
ज़रा कल्पना तो कीजिये यदि आप संत होते , आपका आचरण पवित्र होता , क्या तब भी ऐसा ही होता ?
क्या तब भी वे आपको अस्वीकार कर देते ?
तब क्या वे आपके चरणों में न लोट जाते ?
आप ही विचार करिये क़ि अपने इस आचरण से आखिर आपको मिला क्या ?
क्या आपने " अपनों " को ही नहीं खो दिया ?
" माया मिली न राम "
जो दौलत मिली वह तो भोग नहीं सकते क्योंकि पकडे जाने का भय है और आपके अपने और आपसे दूर हो गए .
आइये ना ! हमारे अपने बन जाइए ना !
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