Wednesday, June 13, 2012

जो अनुकूल दिखता हो वह अनुकूल निमित्त हो यह आवश्यक नहीं , वह प्रतिकूल निमित्त भी हो सकता है यदि हमें पथभ्रष्ट करदे .


जो अनुकूल दिखता हो वह अनुकूल निमित्त हो यह आवश्यक नहीं , वह प्रतिकूल निमित्त भी हो सकता है यदि हमें पथभ्रष्ट करदे .
मैं आपसे ही पूंछता हूँ क़ि यदि कोई राहगीर गर्मी की तपती दोपहर में अपने रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ा जा रहा है , अब उसे थकान भी होने लगी है और गर्मी भी सताने लगी है , वह कुछ देर रूककर आराम करना चाहता है ऐसे में यदि एक छायादार बड़ा सा वृक्ष सड़क के किनारे मिल जाए तो वह अनुकूल निमित्त है या प्रतिकूल ?
अरे जो चाहिए था सो मिल गया तब अनुकूल ही कहा जाएगा न ? प्रतिकूल कैसे कह सकते हें ?
पर यदि वह उस  पेड़ की घनी छाया में रूककर सो जाए और अपनी राह पर आगे बढ़ ही न सके तब ?
तब क्या वह पेड़ और उसकी ठंडी , घनी छाया उसके लक्ष्य की प्राप्ति में अनुकूल निमित्त कहलायेगा ?
नहीं ?
अरे जिसने पथ भ्रष्ट कर दिया वह अनुकूल कैसे हो सकता है ?
जो अनुकूल दिखता हो वह अनुकूल निमित्त हो यह आवश्यक नहीं .
अरे ! जो हमारे लक्ष्य में बाधक हो वह अनुकूल भी कैसे कहला सकता है ?
बस इसलिए मैं कहता हूँ क़ि कोई वस्तु या निमित्त अनुकूल -प्रतिकूल नहीं होते हें , यदि हम पाने साध्य की सिद्धी करते हें तो आसपास विद्यमान सभी संयोग अनुकूल निमित्त कहलाते हें और यदि हम ऐसा नहीं कर पाते हें तो वे ही आसपास की सभी वस्तुएं प्रतिकूल निमित्त कहलाने लगते हें .
यदि मैं अपनी राह पर चल पड़ता हूँ तो सभी संयोग मेरे लिए अनुकूल निमित्त कहलाने लगते हें और यदि मैं ठिठक जाता हूँ , ठहर जाता हूँ तो वे ही सब प्रतिकूल निमित्त कहलाने लगते हें .
उचित यह़ी है क़ि हम निमित्तों की ओर ताकाझांकी बंद करके अपने काम में जुट पड़ें .



डाक्टर द्वारा हमारे भोजन और आचरण पर कठोर नियंत्रण हमें प्रतिकूल संयोग दिखाई दे सकता है पर वह हमें स्वस्थ्य होने और बने रहने के लिए अनुकूल निमित्त है .
मास्टरजी का कठोर अनुशासन भी विद्यार्थी को प्रतिकूल संयोग दिखता अहि पर वह उसके सफलता में अनुकूल निमित्त है .

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