Wednesday, June 27, 2012

कितने (अधिकतर ) लोग वंश , समाज , धर्म , और परम्पराओं के चक्कर में गुमराह हें , गलत राह पर हें . क्या हम भी तो उनमें से एक नहीं हें ? क्या हम भी इसी श्रेणी के लोग बनना चाहते हें ? यदि नहीं तो फिर देर किस बात की ?

इस दुनिया में ५ अरब से अधिक लोग रहते हें , उनके कितने वंश , समाज , धर्म , और परम्पराएं हें , क्या वे सभी महान हें ?
पर सभी अपने - अपने वंश , समाज , धर्म , और परम्पराओं को मानते हें , उन्हें महान मानते हें .
क्या सच्चे और अच्छे का यह पैमाना सही है ?
क्या आपको यह पैमाना मंजूर है ?
आपको सच्चा और अच्छा मार्ग पसंद है या सिर्फ वंश की परम्परा ?
क्या आपके वंशजों ने कभी कोई गलती की ही नहीं है ?
क्या आपने उनकी कोई भी परम्परा आज तक बदली ही नहीं है ?
यदि किसी और मामले में उन्होंने गलती की थी तो क्या इन मामलों में वे गलत नहीं हो सकते हें ?
जब आपने उनकी दूसरी बातें बदल डाली हें तो फिर यह क्यों नहीं बदली जा सकती है ?
यदि हाँ तो फिर कब ?
इस तरह कितने (अधिकतर ) लोग वंश , समाज , धर्म , और परम्पराओं के चक्कर में गुमराह हें , गलत राह पर हें .
क्या हम भी तो उनमें से एक नहीं हें ?
क्या हम भी इसी श्रेणी के लोग बनना चाहते हें ?
यदि नहीं तो फिर देर किस बात की ?
यदि हम भूल पर हों तो भूल कब सुधारी जानी चाहिए ?
भूल सुधारने में कितनी देर करनी चाहिए ?
यदि हम अपनी भूल सुधारने में देर कर रहे हें तो क्यों ?
इस देरी के दौरान हम वह कौनसा महान काम कर रहे हें क़ि हमें अपनी भूल सुधारने जैसा महान काम करने की भी फुर्सत नहीं है ?
क्या हमारी यह़ी वृत्ति स्वयं हमारे अपने प्रति हमारी घोर उपेक्षा नहीं है ?
उपेक्षा तो नफरत और द्वेष से पैदा होती है , तो क्या हमारा यह व्यवहार स्वयं अपने प्रति अपनी नफरत और द्वेष का सूचक नहीं है ?
यदि तू अपने हित के प्रति जागरूक है तो फिर अभी यह काम क्यों प्रारम्भ करता है ?
यदि अभी नहीं तो कब ?
क्या बो " कब " कभी आयेगा ?
क्या इसी जीवन में ?

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