मेरा चिंतन मात्र कहने-सुनने के लिए नहीं, आचरण के लिए, व्यवहार के लिए है और आदर्श भी. आदर्शों युक्त जीवन ही जीवन की सम्पूर्णता और सफलता है, स्व और पर के कल्याण के लिए. हाँ यह संभव है ! और मात्र यही करने योग्य है. यदि आदर्श को हम व्यवहार में नहीं लायेंगे तो हम आदर्श अवस्था प्राप्त कैसे करेंगे ? लोग गलत समझते हें जो कुछ कहा-सुना जाता है वह करना संभव नहीं, और जो किया जाता है वह कहने-सुनने लायक नहीं होता है. इस प्रकार लोग आधा-अधूरा जीवन जीते रहते हें, कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते हें.
Saturday, June 30, 2012
Parmatm Prakash Bharill: जितना श्रम और व्यय हम अपनी गंदगी पर पर्दा डालने मे...
Parmatm Prakash Bharill: जितना श्रम और व्यय हम अपनी गंदगी पर पर्दा डालने मे...: जितना श्रम और व्यय हम अपनी गंदगी पर पर्दा डालने में करते हें , उन्हें छुपाने में करते हें उससे बहुत कम श्रम और व्यय में हम उस गंदगी को निर्...
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