Tuesday, July 3, 2012

---दुनिया को भाग-दौड़ में पुरुषार्थ दिखाई देता है------मेरा सम्पूर्ण पुरुषार्थ मुझे अपने घर में (अपने आप में) रोके रखने में समर्थ नहीं हो पा रहा है , मैं दौड़ पड़ता हूँ यहाँ - वहां , मेरा मन दौड़ पड़ता है जाने कहाँ - कहाँ ..यदि मैं अपनी चाहत के विपरीत दौड़ता हूँ , दौड़ने पर मजबूर हो जाता हूँ तो यह मेरी शक्ति है या कमजोरी ? यह मेरा पुरुषार्थ है या कमजोरी .

जीवन बीत रहा है पर जिन्दगी ठहरी हुई है .
दुनिया को भाग-दौड़ में पुरुषार्थ दिखाई देता है और शान्ति घर में बैठा व्यक्ति आलसी लगता है , पर मैं जानता हूँ क़ि मेरा सम्पूर्ण पुरुषार्थ मुझे अपने घर में (अपने आप में) रोके रखने में समर्थ नहीं हो पा रहा है , मैं दौड़ पड़ता हूँ यहाँ - वहां , मेरा मन दौड़ पड़ता है जाने कहाँ - कहाँ .
यदि मैं अपनी चाहत के विपरीत दौड़ता हूँ , दौड़ने पर मजबूर हो जाता हूँ तो यह मेरी शक्ति है या कमजोरी ?
यह मेरा पुरुषार्थ है या कमजोरी .
यदि मैं पर्वत के शिखर पर खडा होऊं और तेज हवाएं चल रही हों , किसी भी तरह मैं अपने आपको संभाल पाने में समर्थ ही न हो रहा होऊं तब क्या होगा ?
मैं अपनी जगह से हिला और गहरी खाई में गया , ऐसी स्थिति में क्या किसी भी तरह अपनी जगह पर टिके रहना ही पुरुषार्थ नहीं है ? 
फिर भी मैं यह न कर पा रहा होऊं तो उस दशा को क्या कहा जाएगा , अक्षमता ही न ?
अक्षमता का मतलब है वलहीनता , कमजोरी और इसे ही आत्मोत्थान के मार्ग में प्रमाद कहा जाता है .
इस मुकाम पर आकर क्या हमारी यह धारणा खंडित नहीं हो जाती है क़ि भाग - दौड़ और क्रियाकलापों का नाम पुरुषार्थ है और स्थिरता का नाम प्रमाद , आलस्य .

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