जिसे जीवन का ही मोह न रहा उसे भला म्रत्यु से मोह कैसे होगा?
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
अरे! दुनिया के सभी प्राणी तो हर कीमत पर जीवित रहना चाहते हें और मृत्यु से डरते हें, पर जिसे जीवन का ही मोह न रहा उसे भला म्रत्यु से मोह कैसे होगा, म्रत्यु की आकांक्षा कैसे होगी?
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
अरे! दुनिया के सभी प्राणी तो हर कीमत पर जीवित रहना चाहते हें और मृत्यु से डरते हें, पर जिसे जीवन का ही मोह न रहा उसे भला म्रत्यु से मोह कैसे होगा, म्रत्यु की आकांक्षा कैसे होगी?
लोग सल्लेखना के बिना जीते भी है और सल्लेखनाविहीन मौत भी होती ही है, पर न तो जीवन सल्लेखना का विरोधी है और न ही सल्लेखना मृत्यु का नाम है.
सल्लेखना तो इक्षाओं के परिसीमन का नाम है, मोह की मन्दता के फलस्वरूप संयोगों के प्रति ग्रद्ध्ता की मन्दता का नाम सल्लेखना है.
सल्लेखना व्रतधारी को न तो जीवन के प्रति मोह ही होता है और न ही म्रत्यु की आकांक्षा या म्रत्यु का आग्रह.
उत्कृष्टतम जीवनशैली सल्लेखना को मात्र म्रत्यु से जोड़कर देखना और आत्महत्या करार देना तेरी बुद्धी का दिवालियापन नहीं तो और क्या है?
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