------इस परेशानी की जड़ हमारे द्रष्टिकोण में है और अपने द्रष्टिकोण को बदलकर हम इस मानसिक यंत्रणा से छुटकारा पा सकते हें .-----------
मृत्यु तो निश्चित है , ( क़ि एक न एक दिन आयेगी ही ) पर जीवन है एक दम अनिश्चित ( क़ि कब तक टिकेगा , कोई नहीं जानता )
----------जो सत्य है उसे स्वीकार करना सकारात्मकता है या नकारात्मकता ?
जो सत्य नहीं है उसके भ्रम में पलना सकारात्मकता है या धोखा ?
----------------अपने वे काम समय रहते निपटालें जिन्हें किये बिना हम मरना नहीं चाहते हें , जिन्हें किये बिना यह जीवन अधूरा रहता है , जिन्हें किये बिना जीवन के लक्ष्य की पूर्ती नहीं होती है .यदि हम ऐसा कर पाए तो हमारा यह जीवन सम्पूर्ण हो सकेगा , हमारे ह्रदय से मौत का डर निकल जाएगा , अपने जीवन के ही समान हमारी मृत्यु भी महोत्सव बन जायेगी .
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