हमें जीवन उसी तरह जीना चाहिए जैसे हम सिनेमा देखते हें .
--------उसमें जो चरित्र जैसा है बैसा जान लेते हें , जो घटनाएं जैसी घटी हें बैसी जान लेते हें पर सुखी - दुखी नहीं होते हें
--------न तो सुखी - दुखी होते हें और न ही कुछ भी बदलने का प्रयास करते हें -----------------------------
अपने जीवन में हम वैसे ही ज्ञाता - द्रष्टा (जानने और देखने वाले ) क्यों नहीं रह पाते हें जैसे हम सिनेमा देखने के समय रह पाते हें .
क्योंकि सिनेमा के बारे में हम यह बात बहुत अच्छी तरह से जानते हें क़ि इसमें " जो कुछ होना है वह निश्चित है , इसमें कोई परिवर्तन संभव नहीं है " .
------वास्तविक जीवन और इस दुनियाँ (श्रष्ठी) के बारे में हमारा द्रष्टिकोण विल्कुल ही अस्पष्ट है और हम इसके बारे में कभी गहराई से कोई विचार भी नहीं करते हें .
------------------------------------------ दोनों ही स्थितियों में हम जैसे साधारण लोगों के हाथ में तो कुछ भी नहीं रहता है न ?
या तो सब कुछ स्वयं संचालित रहेगा या सबका संचालन ईश्वर करेगा ,हम क्या कर सकते हें , शिवाय देखने और जानने के ?
----------------यह हमारे हे हित में है क़ि हम सत्य को जाने , समझें , स्वीकार करें और तदनुसार आचरण करें , हमारा कल्याण होगा .
pls click on link bellow ( blue letters ) to read full -
http://www.facebook.com/pages/Parmatmprakash-Bharill/273760269317272
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--------न तो सुखी - दुखी होते हें और न ही कुछ भी बदलने का प्रयास करते हें -----------------------------
अपने जीवन में हम वैसे ही ज्ञाता - द्रष्टा (जानने और देखने वाले ) क्यों नहीं रह पाते हें जैसे हम सिनेमा देखने के समय रह पाते हें .
क्योंकि सिनेमा के बारे में हम यह बात बहुत अच्छी तरह से जानते हें क़ि इसमें " जो कुछ होना है वह निश्चित है , इसमें कोई परिवर्तन संभव नहीं है " .
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या तो सब कुछ स्वयं संचालित रहेगा या सबका संचालन ईश्वर करेगा ,हम क्या कर सकते हें , शिवाय देखने और जानने के ?
----------------यह हमारे हे हित में है क़ि हम सत्य को जाने , समझें , स्वीकार करें और तदनुसार आचरण करें , हमारा कल्याण होगा .
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