जब-जब तू दूसरों की ओर देखेगा रोग ग्रस्त हो जाएगा .
सारी की सारी विकृतियों का जन्म दूसरों की ओर देखने से होता है .
किसी की ओर देखने पर गुस्सा आता है , किसी की ओर देखने पर प्यार की अनुभूति होती है , जलाते दोनों ही हें .
किसी की ओर देखने पर कुछ चुराने का मन होता है , किसी को झूंठ बोलकर ठगने का .
किसी ओर देखेगा तो उच्चता की भावना ( superiority complex ) से ग्रस्त हो जाएगा और किसी अन्य ओर देखेगा तो हीनता की भावना (inferiority complex ) से भर जाएगा .
यदि तू अपनी ओर देखेगा तो रोग मुक्त हो जाएगा भव रोग से मुक्त हो जाएगा .
तू अपनी ओर देखेगा तो पायेगा क़ि मेरा अपना आत्मा ( मैं स्वयं ) इस लोक में सबसे सुन्दर है .
यदि तू दूसरों की ओर देखेगा तो दुखी होने के शिवाय और कोई परिणाम नहीं .
यदि तू दयालू और सज्जन है तो दूसरों को दुखी देखकर दुखी होगा और यदि तू दुर्जन और क्रूर स्वभाव का है तो दूसरों को सुखी देखकर दुखी होगा .
यदि तू अपनी ओर देखेगा तो तू तो स्वयं शान्ति का सागर है ही , आनंद का घन पिंड है तू .
यदि तू किसी और की ओर देखेगा तो किसी से किसी को कुछ देने का मन हो जाएगा या किसी से कुछ लेने को मन ललचाएगा .
अब तेरे दुःख का कोई अंत नहीं क्योंकि न तो तू किसी से कुछ ले सकता है और ना ही किसी को कुछ दे ही सकता है .
यदि तू अपने अन्दर झांकेगा तो पायेगा क़ि वहां हेराफेरी की कोई गुंजाईस ही नहीं है , न तो कोई कमी है क़ि किसी से कुछ लेने की जरूरत हो और ना ही कुछ ऐसा ज्यादा है जो किसी को दिया जा सके .
अगर तू बाहर की ओर देखेगा तो कुछ हेराफेरी करने को मन मचलेगा और वस्त्तु के स्वभाव में ऐसी कोई गुंजाईस तो है नहीं तब तुझे दुखी होने के शिवाय और क्या रास्ता बचेगा ?
यदि तू अपने अन्दर झांकेगा तो वहां तो कुछ करने को है ही नहीं , तू तो अपने आप में स्वयं पूर्ण है .
सारी की सारी विकृतियों का जन्म दूसरों की ओर देखने से होता है .
किसी की ओर देखने पर गुस्सा आता है , किसी की ओर देखने पर प्यार की अनुभूति होती है , जलाते दोनों ही हें .
किसी की ओर देखने पर कुछ चुराने का मन होता है , किसी को झूंठ बोलकर ठगने का .
किसी ओर देखेगा तो उच्चता की भावना ( superiority complex ) से ग्रस्त हो जाएगा और किसी अन्य ओर देखेगा तो हीनता की भावना (inferiority complex ) से भर जाएगा .
यदि तू अपनी ओर देखेगा तो रोग मुक्त हो जाएगा भव रोग से मुक्त हो जाएगा .
तू अपनी ओर देखेगा तो पायेगा क़ि मेरा अपना आत्मा ( मैं स्वयं ) इस लोक में सबसे सुन्दर है .
यदि तू दूसरों की ओर देखेगा तो दुखी होने के शिवाय और कोई परिणाम नहीं .
यदि तू दयालू और सज्जन है तो दूसरों को दुखी देखकर दुखी होगा और यदि तू दुर्जन और क्रूर स्वभाव का है तो दूसरों को सुखी देखकर दुखी होगा .
यदि तू अपनी ओर देखेगा तो तू तो स्वयं शान्ति का सागर है ही , आनंद का घन पिंड है तू .
यदि तू किसी और की ओर देखेगा तो किसी से किसी को कुछ देने का मन हो जाएगा या किसी से कुछ लेने को मन ललचाएगा .
अब तेरे दुःख का कोई अंत नहीं क्योंकि न तो तू किसी से कुछ ले सकता है और ना ही किसी को कुछ दे ही सकता है .
यदि तू अपने अन्दर झांकेगा तो पायेगा क़ि वहां हेराफेरी की कोई गुंजाईस ही नहीं है , न तो कोई कमी है क़ि किसी से कुछ लेने की जरूरत हो और ना ही कुछ ऐसा ज्यादा है जो किसी को दिया जा सके .
अगर तू बाहर की ओर देखेगा तो कुछ हेराफेरी करने को मन मचलेगा और वस्त्तु के स्वभाव में ऐसी कोई गुंजाईस तो है नहीं तब तुझे दुखी होने के शिवाय और क्या रास्ता बचेगा ?
यदि तू अपने अन्दर झांकेगा तो वहां तो कुछ करने को है ही नहीं , तू तो अपने आप में स्वयं पूर्ण है .
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