Sunday, August 5, 2012

इसीलिए वे लोग जो अपनी स्वाभाविकता के साथ जीना चाहते हें , वे लोगों से अपने सम्बन्ध काट लेते हें , और इसी का नाम है संन्यास .

दुनिया में एक दूसरे के बीच कितने मतभेद हें , ऐसा लगता है क़ि इनका कोई अंत ही नहीं है .
दरअसल मतभेद सिर्फ इतने ही नहीं हें जितने दिखाई देते हें , मतभेद तो इनसे कई गुना अधिक हें .
दरअसल हम सभी इतने सहनशील हें क़ि जहां तक हमसे बन पड़े , हम एडजेस्ट करते हें और सिर्फ तब ही मतभेद जाहिर करते हें जब पानी सर से ऊपर बहने लगे . ऐसा ही कमोवेश दोनों ही पक्ष एक दूसरे के साथ करते हें और इसलिए दोनों के बीच के अधिकतम मतभेद तो सामने ही नहीं आ पाते हें .
अब आप कल्पना कर सकते हें क़ि किसी एक के साथ भी सम्बन्ध रखना कितना महंगा सौदा है , हमें अपने आप को कितना दबाना होता है , कितना मारना होता है , अपनी नीतियों और स्वभाव से कितना समझौता करना होता है तब हम किसी एक के साथ सीमित सम्बन्ध विकसित कर पाते हें .
हम देखते हें क़ि जीवन में कितने लोगों से सम्बन्ध रखने पड़ते हें , तब हमें कितने समझौते करने पड़ते हें ?
इस सारे प्रोसेस में हमारी अपनी असलियत तो खो ही जाती है , हम , हम रहते ही कहाँ पाते हें ?
इसीलिए वे लोग जो अपनी स्वाभाविकता के साथ जीना चाहते हें , वे लोगों से अपने सम्बन्ध काट लेते हें , और इसी का नाम है संन्यास .

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