Saturday, August 4, 2012

Parmatm Prakash Bharill: --------------यदि बगुलों के झुण्ड में हंस भी पहुँच...

--------------यदि बगुलों के झुण्ड में हंस भी पहुँच जाएँ तो भी यह़ी हाल होगा .---------------------यदि पानी से भरे गिलास में भी १०-२० बूँदें दूध की मिला दी जाएँ तो कोई उस पानी को पिएगा नहीं , यह कहकर क़ि पानी गंदा है .--------------------------वैरागियों के बीच रागी - द्वेषी तो शोभा देते ही नहीं हें पर यदि इन रागियों के बीच कोई वैरागी फंस जाए तो उसकी भी कोई कम दुर्दशा नहीं होगी .----------------------यदि अपात्र बन्दर पर बहुत करुणा आती हो तो उस करुणा को अपने ह्रदय में ही संजो कर रखना , बाहर प्रकट मत होने देना , कहीं उपदेश मत देने लग जाना !-----------------जवान की खुजली मिटती ही न हो तो अपना बुरा समय आया जानकर ही व्यवहार करना -----------------इसीलिये तो कहते हें क़ि मात्र द्वेष ही नहीं , राग भी दुःख का कारण है .
अरे ! कारण क्या है , दुःख ही है .
-------------------------------दूसरे को दुखी देखकर हमें जो दुःख होता है , वही तो दया है .----------------------------------------------------
आप किसी दुखी का दुःख दूर करने निकले थे और स्वयं ही दुखियों की जमात में शामिल हो गए .
इसीलिये तो कहा है क़ि उपदेश देने का भाव भी राग की भट्टी में जलने के समान है और यह भी तीव्र कषाय के बिना संभव नहीं है , अकषाय भाव तो एक मात्र स्वरूप में स्थिरता है .
हाँ ! तीन कषाय के अभावरूप वीतरागता के धारी , निर्ग्रन्थ मुनिराज भी शेष रही संज्वलन कषाय के तीव्र उदयकाल में ही शास्त्रों की रचना और धर्मोपदेश का काम करते हें .
संज्वलन की मंदता के काल में तो ध्यानस्थ होकर स्वभाव सन्मुख होते हें .

Parmatm Prakash Bharill: --------------यदि बगुलों के झुण्ड में हंस भी पहुँच...:  " ना शोभते सभा मध्ये , हंस मध्ये वको यथा " कहा गया है क़ि यदि हंसों के समूह में यदि बगुले पहुँच जाएँ तो वे शोभा नहीं देते हें . पर भईय...

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