Monday, January 28, 2013

जिन्हें तू अपनी अपनी होशियारी समझता है वे सब तेरी घोर मूर्खताएं हें क्योंकि अंततः वे तुझे ही तो संकट में डालतीं हें .

जीवन में जब प्रतिकूलताएं आतीं हें तब यह भगवान् से पूंछता है कि  " हे भगवान् ! मैंने ऐसे क्या पाप किये थे कि मुझे ऐसा फल मिल रहा है " , और साथ ही साथ निरंतर पाप कार्यों में ही लिप्त बना रहता है एक पल भी उन्हें छोड़ता नहीं है .
अब भगवान् से क्या पूंछता  है ? तू खुद ही विचार कर ! जिन्हें तू सामान्य मानता है वे करतूतें कितनी खतरनाक हें , जिन्हें तू इस दुनिया में जीने के लिए जरूरी मानता है वे इस जीवन के लिए कितनी दर्दनाक हें , जिन्हें तू अपनी अपनी होशियारी समझता है वे सब तेरी घोर मूर्खताएं हें क्योंकि अंततः वे तुझे ही तो संकट में डालतीं हें .
दुनिया में कोई अन्य किसी को दण्डित नहीं करता है , हम स्वयं ही अपने आप को दण्डित करते हें अपराध करके . 
अपराध करने पर हम दंड के भागी (हकदार) तो स्वतः ही बन जाते हें और स्वतः ही दण्डित होते हें यह तो प्रकृति की एक आटोमेटिक प्रक्रिया है .
यदि तुझे दण्डित नहीं होना है तो न तो किसी की चौखट पर नाक रगड़ने की जरूरत है और न ही किसी से माफी मांगने की बस अपने आप में सुधार लाने की जरूररत है .
जब तू खुद पीड़ित है और अपनी स्वयं की पीड़ा दूर करने के लिए खुद ही कुछ भी नहीं करना चाहता है तो भला दूसरे से क्या उम्मीद रखता है ? उसे तो पीड़ा है नहीं .
यूं भी कोई किसी का कुछ भी भला या बुरा कर ही नहीं सकता है .

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