ये तेरा झूंठा आरोप है क़ि तू परिस्थितियों में फंसा हुआ है .
तू एक दम स्वतंत्र है .
तुझे किसी ने बांधा नहीं है तू भ्रम से बंधा हुआ है .
हांडी में हाथ डालकर मुट्ठी बंद कर लेने वाला बंदर किससे बंधा है ? उसे किसने बांधा है ?
थोड़े से चनों की चाहत ने ही तो .
यदि वह मुट्ठी खोल दे तो किसने उसे पकड़ा है .
नल्की से लटके हुए तोते को भी किसने पकड़ा है ?
बस वही अपना उड़ने के स्वभाव को भूल गया है और समझने लगा है क़ि यदि नल्की को छोड़ देगा तो नीचे गिर जाएगा और इसीलिये स्वयं नल्की को पकडे रहता है तथा शिकारी के हाथ में पड जाता है .
तू चाहे तो अभी , इसी वक्त किसी भी परिस्थिति से निकल सकता है .
पर तू ही कहाँ निकलना चाहता है ?
यह जानते हुए भी क़ि एक दिन तो चाहे या न चाहे निकलना ही होगा , यदि तब निकल सकता है तो अभी क्यों नहीं ?
तब चार्ज लेने कौन आयेगा ?
तब भी तो यूं ही छोड़ जाएगा न ?
तब भी जिसका जो होना होगा वह होगा , तब भी तो सब लोग स्वयं तेरे बिना ही सब कुछ मेनेज करेंगे ही , तब आज ही क्या बिगड़ जाने बाला है ?
अरे सम्राट और चक्रवर्ती चले गए तब क्या बिगड़ा
अरे छोड़ दे यह तेरा दंभ है क़ि दुनिया तुझसे चलती है , अपने सर के बालों और मुह्के दांतों तक पर तो तेरा जोर चलता नहीं है और जगत का कर्ता-धर्ता बनने चला है
एक कर्मचारी अपने सर पा र्कितना काम का भार ढोकर चलता है पर स्तीफा देते ही भार मुक्त हो जाता है , तब उसके काम का क्या होता है ?
काम भी हो ही जाता है , कोई और कर्ता है पर इससे उसको क्या ?
वह तो कभी भी भार मुक्त होने के लिए स्वतंत्र है , यदि बंधा है तो स्वयं अपनी मर्जी से .
बस ऐसा ही तेरे साथ भी है
इसलिए जल्दी ही निर्भार हो जा , तेरा कल्याण होगा .
तू एक दम स्वतंत्र है .
तुझे किसी ने बांधा नहीं है तू भ्रम से बंधा हुआ है .
हांडी में हाथ डालकर मुट्ठी बंद कर लेने वाला बंदर किससे बंधा है ? उसे किसने बांधा है ?
थोड़े से चनों की चाहत ने ही तो .
यदि वह मुट्ठी खोल दे तो किसने उसे पकड़ा है .
नल्की से लटके हुए तोते को भी किसने पकड़ा है ?
बस वही अपना उड़ने के स्वभाव को भूल गया है और समझने लगा है क़ि यदि नल्की को छोड़ देगा तो नीचे गिर जाएगा और इसीलिये स्वयं नल्की को पकडे रहता है तथा शिकारी के हाथ में पड जाता है .
तू चाहे तो अभी , इसी वक्त किसी भी परिस्थिति से निकल सकता है .
पर तू ही कहाँ निकलना चाहता है ?
यह जानते हुए भी क़ि एक दिन तो चाहे या न चाहे निकलना ही होगा , यदि तब निकल सकता है तो अभी क्यों नहीं ?
तब चार्ज लेने कौन आयेगा ?
तब भी तो यूं ही छोड़ जाएगा न ?
तब भी जिसका जो होना होगा वह होगा , तब भी तो सब लोग स्वयं तेरे बिना ही सब कुछ मेनेज करेंगे ही , तब आज ही क्या बिगड़ जाने बाला है ?
अरे सम्राट और चक्रवर्ती चले गए तब क्या बिगड़ा
अरे छोड़ दे यह तेरा दंभ है क़ि दुनिया तुझसे चलती है , अपने सर के बालों और मुह्के दांतों तक पर तो तेरा जोर चलता नहीं है और जगत का कर्ता-धर्ता बनने चला है
एक कर्मचारी अपने सर पा र्कितना काम का भार ढोकर चलता है पर स्तीफा देते ही भार मुक्त हो जाता है , तब उसके काम का क्या होता है ?
काम भी हो ही जाता है , कोई और कर्ता है पर इससे उसको क्या ?
वह तो कभी भी भार मुक्त होने के लिए स्वतंत्र है , यदि बंधा है तो स्वयं अपनी मर्जी से .
बस ऐसा ही तेरे साथ भी है
इसलिए जल्दी ही निर्भार हो जा , तेरा कल्याण होगा .
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