MERA JIVAN DARSHAN -
प्रतिकूलताएं परेशान भी करती हें और अनुकूलताएँ सुखद अहसास भी करबाती हें ( पर इस सन्दर्भ में मेरी अभिव्यक्ति अत्यंत कमजोर ( क्षीण ) है ), पर यह सब उपरी ( superficial ) है , सचमुच तो मेरी बुद्धी को इस दुनिया में कोई दिलचस्पी है ही नहीं.
क्यों ?
स्थितियां क्षणिक हें , क्षणिक (अस्थिरताओं) पर मेरा भरोसा नहीं है , इसमें मेरी रूचि नहीं है , एक क्षण के वर्तमान पर मर - मिटकर मैं क्या करूं ?
अतीत व्यतीत हो
प्रतिकूलताएं परेशान भी करती हें और अनुकूलताएँ सुखद अहसास भी करबाती हें ( पर इस सन्दर्भ में मेरी अभिव्यक्ति अत्यंत कमजोर ( क्षीण ) है ), पर यह सब उपरी ( superficial ) है , सचमुच तो मेरी बुद्धी को इस दुनिया में कोई दिलचस्पी है ही नहीं.
क्यों ?
स्थितियां क्षणिक हें , क्षणिक (अस्थिरताओं) पर मेरा भरोसा नहीं है , इसमें मेरी रूचि नहीं है , एक क्षण के वर्तमान पर मर - मिटकर मैं क्या करूं ?
अतीत व्यतीत हो
चुका है , इतिहास के कूड़ेदान का बोझ बन चुका है , जिस क्षण उसका विचार किया जाबे वह क्षण भी उसीके साथ उसी कूड़ेदान का व्यर्थ अंश बन जाता है .
और भविष्य ?
जैसा वर्तमान है वैसे ही भविष्य ( क्षणिक ) का क्या प्रयोजन ?
मुझे स्थिरता चाहिए , स्थायित्व चाहिए , निश्चितता चाहिये , निश्चिंतता चाहिए .
यह सब कुछ मात्र अपने में है , अपने आप में .
बस इसीलिये मेरा द्रष्टिकोण संकुचित है , सिर्फ अपने आप तक सीमित .
और भविष्य ?
जैसा वर्तमान है वैसे ही भविष्य ( क्षणिक ) का क्या प्रयोजन ?
मुझे स्थिरता चाहिए , स्थायित्व चाहिए , निश्चितता चाहिये , निश्चिंतता चाहिए .
यह सब कुछ मात्र अपने में है , अपने आप में .
बस इसीलिये मेरा द्रष्टिकोण संकुचित है , सिर्फ अपने आप तक सीमित .
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