हमारी रीति - नीति :-
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी का अभ्युदय इस कलिकाल में आत्मार्थियों के लिए किसी अदभुत वरदान से कम नहीं .
समयसार का उदघाटन , गहन तत्व का प्ररूपण , निरंतन आत्म चिंतन , पठन और पाठन यह है हमें पूज्य गुरुदेवश्री का प्रदेय .
हम उनकी मशाल को थामकर ही आगे बढ़ रहे हें .
वीतरागी देव , शास्त्र , गुरु एवं तत्वज्ञान के प्रति हमारी गहरी आस्था एवं सम्पूर्ण समर्पण है एवं उसीका प्रचार और प्रसार हमारा एक मात्र उद्देश्य , हमारी मान्यता है क़ि यह़ी एक मात्र मार्ग है जो इस भगवान आत्मा को भवभ्रमण के अभिशाप से मुक्ति दिलाकर शिद्ध्शिला तक पहुंचाने में सक्षम है , यह़ी वह कार्य है जिसे करने में इस जीवन की सफलता है .
पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट आत्मार्थियों की वह अनूठी संस्था है जो पिछले ४५ बर्षों से सतत गहन तत्व प्रचार के काम में संलग्न है .
अनेकों अवरोध आये पर हम अटके नहीं .
अनेकों भुलावे आये मगर हम भटके नहीं .
अनेक दबाब आये पर हम झुके नहीं .
अनेक प्रलोभन मिले पर हम बिके नहीं .
अनेकों विपत्तियाँ आयीं पर हम टूटे नहीं .
उकसाने के अनेक प्रयास हुए पर हम रूठे नहीं .
जिस उद्देश्य को लेकर , जिस रीति-नीति के साथ हम प्रारम्भ हुए थे , आज तक उसी पर कायम हें और सदा रहेंगे .
हम थोड़े से लोग साथ चले थे , लोग जुड़ते गए , कारबां बढ़ता गया .
बहुत लोग जुड़े , कुछ बिछुड़े और कुछ भटक भी गए ; पर हम जैसे थे वैसे ही रहे , अपने पथ पर बढ़ते रहे .
समाज में करने को काम बहुत हें , कुछ बहुत आवश्यक भी हें और बहुत अच्छे भी पर हमने जो काम अपने हाथ में लिया है वह अनूठा है .
अनेकों सुझाव , दबाब , आदेश और प्रलोभन आते रहे क़ि हम कुछ और काम अपने हाथ में लें , अन्य गतिविधियों से भी जुड़ें , पर हम उनसे पृथक ही रहे .
इसलिए नहीं क़ि वे काम करने योग्य नहीं हें , पर इसलिए क़ि अन्य अनेकों लोग भी वे काम कर ही रहे हें .
हमने जो अनूठा काम अपने हाथ में लिया है वह अनुपम है और अन्य बहुत लोग उस काम में नहीं लगे हें .
आज तो फिर भी और कुछ लोग , और कुछ संस्थाएं इसमें जुडी हें पर जब हमने शुरुवात की थी तब तो हम अकेले ही थे .
हमारा संकल्प है क़ि हम इस मार्ग से च्युत नहीं होंगे .
हालांकि यह काम सर्वोत्कृष्ट है , तथापि आलोचनाएँ भी होतीं हें , विरोध भी होता , प्रतिरोध भी होता है और अवरोध भी आते हें .
हमारी नीति रही है क़ि हम इन सब से प्रभावित नहीं होते हें , हम रुकते नहीं , हम अटकते नहीं , हम भटकते नहीं .
हम किसी वाद विवाद में नहीं पड़ते हें , हमारा काम उन सबके लिए हमारा जबाब है , हम सदा इसी नीति पर कायम रहेंगे .
विवादों में न उलझना हमारी कमजोरी नहीं , हमारी शक्ति का प्रतीक है .
अपने कार्य करते रहना हमारी वीरता है और उससे विचलित नहीं होना हमारी धीरता .
आस्था और विचार भिन्नता के तो अनेकों कारण हो सकते हें और एक विशाल समाज के सदस्यों के बीच ऐसी विचार भिन्नता स्वाभाविक ही है , पर हमारा यह दृढ विश्वास है क़ि बिना किसी लौकिक आकांक्षा के , जो लोग धर्म और अध्यात्म से जुड़े हें , वे सभी आत्म कल्याण की भावना से ही जुड़े हें ,वे सभी हमारी ही तरह आत्मार्थी ही हें ,और आत्मार्थियों से द्वेष कैसा ? वे तो वात्सल्य के पात्र हें , और इसीलिये किसी से शत्रुता करना या किसी के प्रति द्वेष पालना या द्वेषपूर्ण व्यवहार करना न तो हमारी वृत्ति है और न ही हमारी नीति , हम सदा इसी नीति पर कायम रहेंगे .
हमारी दृढ मान्यता है क़ि -
आत्म कल्याण विशुद्ध व्यक्तिगत मामला है , इस मामले में किसी अन्य का किसी से सारोकार नहीं हो सकता है .
दार्शनिक मान्यताएं सबका अपना व्यक्तिगत अधिकार है , इनका प्रभाव लोकोत्तर है , इनका सम्बन्ध भव के अभाव से है , इनमें दखलंदाजी करना किसी का अधिकार नहीं हो सकता है , उसमें किसी का दखल नहीं होना चाहिए , इन बिषयों में हम कभी किसी का दबाब और दखल स्वीकार नहीं करेंगे .
धार्मिक परम्पराएं , उपासना पद्धति और पूजा - अर्चना की विधि सबके अपने - अपने सोच और विश्वास पर निर्भर करती हें , उनमें किसी भी स्तर पर बाहरी दबाब उचित नहीं है . इन बिषयों में न तो हम किसी पर जोर जबरदस्ती करेंगे और न ही किसी की जोर जबरदस्ती स्वीकार करेंगे , हम चाहते हें क़ि सब लोग अपने - अपने स्थानों पर प्रचलित पद्धति के अनुसार अपनी आस्था और विश्वाश के अनुरूप पूजा - उपासना के लिए स्वतंत्र रहें .
सामाजिकता मनुष्य मात्र की आवश्यकता है और हम सभी आत्मार्थियों की भी सभी तरह की सामाजिक आवश्यकताएं हें , सामाजिक एकता और अखंडता में हमारा दृढ विश्वास है , हम किसी भी तरह के विग्रह में विश्वास नहीं करते , न तो दार्शनिक आस्थाओं के आधार पर ( न ही दार्शनिक आस्थाओं की कीमत पर ) और न ही उपासना पद्धति के आधार पर या किसी अन्य सामाजिक रीति रिबाजों के आधार पर . उक्त सभी बिषयों को अपनी - अपनी जगह कायम रखते हुए , बिना किसी शर्त , दबाब और वल प्रयोग के सामाजिक एकता और अखंडता में हमारी गहरी आस्था है .
हम कभी भी किसी भी सामाजिक विग्रह का कारण नहीं बनेंगे और सदा ही बिना शर्त सामाजिक एकता के लिए कार्य करते रहेंगे .
हम अब तक भी अपनी रीति-नीतियों पर द्रढ़ता पूर्वक चले हें और अपने सिद्धांतों से समझौता किये बिना सामाजिक एकता कायम रखने में और उसके विकास में सफल रहे हें और आगे भी ऐसा ही करते रहेंगे .
आत्मोत्थान और तत्व प्रचार के इस अभियान में अकेले ही बहुत कुछ भी कर पाना संभव नहीं था , पूज्य गुरुदेव श्री का वरद हस्त तो हमारे ऊपर था ही , हमारी इस लम्बी यात्रा में हमारी उक्त रीतिनीति से सहमती रखने वाले बहुत से महानुभावों का यथायोग्य आशीर्वाद मिला , सहयोग मिला , सेवायें मिलीं और अनुमोदन मिला .
जिनवाणी के प्रवक्ताओं , वक्ताओं और शिक्षकों का समाज पर असीम उपकार है और तत्वप्रचार का यह महान कार्य सिर्फ उन्हीं के समर्पण का प्रतिफल है , वे ही हमारी शक्ति हें और वे ही हमारे विशवास के केंद्र बिंदु .
प्रत्येक व्यक्ति का नामोल्लेख तो संभव नहीं पर हम उन सभी के प्रति कृतज्ञ हें .
हमारी कार्यकर्ताओं की बड़ी टीम के वे सभी सदस्य ( हमारे कार्यालय में कार्यरत सदस्य ) जिनका जीवन ही इस सबके प्रति समर्पित है या यूं कहिये क़ि यह़ी उनका जीवन है वे इस संस्था की रीढ़ की हड्डी (back bone) हें , जिन्होंने सदा परदे के पीछे रहकर ही काम किया है , उन्होंने न तो तकलीफों की परवाह की और न ही शाबासी की चाह रखी , उनका योगदान हमें सदा ही अविस्मर्णीय रहेगा .
हमें सर्वाधिक वल मिलता है आप सभी के सहयोग से . सभी लोग हमरी गतिविधियों से गहराई के साथ गुदे हें एवं सम्पूर्ण समर्पण के साथ तन , मन और धन से आप सभी का सहयोग हमें समस्त गतिविधियों के संचालन की शक्ति प्रदान करता है .
हम आशा करते हें क़ि उक्त सभी वगों से भविष्य में भी हमें यथ्वत सहयोग मिलता रहेगा और पूज्य गुरुदेव श्री द्वारा उद्घाटित वेत्रागी तत्वज्ञान की यह गंगा चिर काल तक यथावत प्रवाहित रहेगी .
हमें सर्वाधिक वल मिलता है आप सभी के सहयोग से . सभी लोग हमरी गतिविधियों से गहराई के साथ गुदे हें एवं सम्पूर्ण समर्पण के साथ तन , मन और धन से आप सभी का सहयोग हमें समस्त गतिविधियों के संचालन की शक्ति प्रदान करता है .
हम आशा करते हें क़ि उक्त सभी वगों से भविष्य में भी हमें यथ्वत सहयोग मिलता रहेगा और पूज्य गुरुदेव श्री द्वारा उद्घाटित वेत्रागी तत्वज्ञान की यह गंगा चिर काल तक यथावत प्रवाहित रहेगी .
आइये हम सभी इस अभियान को दीर्घजीवी बनाने का संकल्प लें .
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