Monday, September 3, 2012

ये झंझाबात तो लगे ही रहेंगे , एक मिटेगा सौ पैदा होंगे , इनका क्या ? ये तो क्षणिक हें , इनकी उम्र ही एक समय की है , ये तो आते - जाते रहेंगे , अपना काम करते रहेंगे . हमारा क्या होगा ? क्या हम इन्हीं में उलझे रहेंगे ?

ये झंझाबात तो लगे ही रहेंगे , एक मिटेगा सौ पैदा होंगे , इनका क्या ?
ये तो क्षणिक हें , इनकी उम्र ही एक समय की है , ये तो आते - जाते रहेंगे , अपना काम करते रहेंगे .
हमारा क्या होगा ? क्या हम इन्हीं में उलझे रहेंगे ?
क्या हमारे पास अपना कुछ और नहीं है करने को ?
क्या हम बस आने वाले का स्वागत करते रहेंगे और जाने वाले को बिदाई देते रहेंगे ?
अरे ! ये तो एक - एक क्षण करके हमारा सम्पूर्ण जीवन ही लील जायेंगे .
हमारे दूरगामी लक्ष्य में इन क्षणिक घटनाओं का कोई महत्त्व नहीं है ,तब हम क्यों इनमें उलझें ?
हम ट्रेन में यात्रा करते हें , खिड़की से बाहर द्रश्य तेजी से आते और चले जाते हें .
क्या उन पर हमारा कोई नियंत्रण है ? क्या उनमें हम कुछ फेरबदल आकर सकते हें ?
तब क्यों हम उनमें ही उलझे रहते हें , उनमें राम कर अपना वक्त बर्बाद करते रहते हें ?
बस जीवन यात्रा भी तो ऐसी ही है , यहाँ रोज - रोज घटित होने वाली घटनाओं पर हमारा कोई भी तो नियंत्रण नहीं है , तब क्यों हम अपने विकल्पों को उससे जोड़कर अपना वक्त बर्बाद करें .
क्यों न हम तटस्थ - विरक्त ज्ञाता-द्रष्टा बने रहें ?
यदि ऐसा हो सका तो हमारा कल्याण होगा .

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