क्या कोई उस सराय या धर्मशाला या होटल के उद्धार के बारे में सोचने को बैठ जाता है जिसमें जाकर/आकर ठहरा है ? (sirf kuch hi din ke liye )
pls click the link bellow to read in full-
http://parmatmprakashbharill.blogspot.in/2012/09/blog-post_7.html
Parmatm Prakash Bharill: यदि आपको इस जीवन के बाद आत्मा के अस्तित्व में भरोस...: यदि आपको इस जीवन के बाद आत्मा के अस्तित्व में भरोसा नहीं है तो हमें भी तुहें समझाने में कोई रूचि नहीं है . चार दिन की जिन्दगी के लिए क्या...
मेरा चिंतन मात्र कहने-सुनने के लिए नहीं, आचरण के लिए, व्यवहार के लिए है और आदर्श भी. आदर्शों युक्त जीवन ही जीवन की सम्पूर्णता और सफलता है, स्व और पर के कल्याण के लिए. हाँ यह संभव है ! और मात्र यही करने योग्य है. यदि आदर्श को हम व्यवहार में नहीं लायेंगे तो हम आदर्श अवस्था प्राप्त कैसे करेंगे ? लोग गलत समझते हें जो कुछ कहा-सुना जाता है वह करना संभव नहीं, और जो किया जाता है वह कहने-सुनने लायक नहीं होता है. इस प्रकार लोग आधा-अधूरा जीवन जीते रहते हें, कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते हें.
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