जो व्यक्ति दुनिया में लेनदेन के व्यवहार में उतर आता है उसका कद सीमित हो जाता है . उसका कद वह हो जाता जिस स्तर के लेनदेन में वह व्यस्त रहता है , उसके तुलने की तराजू का दायरा उसके व्यक्तित्व का दायरा बन जाता है।
यदि हमें उक्त दायरे से मुक्त होना है , हमें विशाल बनना है , वेमिशाल बनना है तो दुनिया के स्थपित पैमाने और मिशालें हमारे किसी काम की नहीं , हमें अपने पैमाने स्थापित करने होंगे अपनी मिशाल कायम करनी होगी .
महान लोग दुनिया की नक़ल नहीं करते , दुनिया से होड़ नहीं करते , बे वह नहीं करते जो सब करते हें , बे वह करते हें जो कोई नहीं करता .
यदि तू कमजोर लोगों से होड़ करेगा तो विजेता बनने पर भी क्या बन पायेगा ? अंधों के बीच तो काने भी राजा बन जाते हें .
सौ मीटर की दौड़ में दौड़ने बाला सौ मीटर की दौड़ का विजेता तो हो सकता है असीमित और निरपेक्ष विजेता नहीं .
सौ मीटर की दौड़ में शामिल होने का नुक्सान यह है की अब तेरा लक्ष्य सौ मीटर का हो गया , तू सौ मीटर के पैमाने तक ही सीमित हो गया .
कोई व्यक्ति प्रतिदिन असीमित नहीं दौड़ सकता है पर तेरी दौड़ असीमित लक्ष्य के साथ होने चाहिए , किसी 100 मीटर के लक्ष्य के साथ नहीं .
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