Monday, January 21, 2013

किसी की दुष्टता का जबाब दुष्टता से देने का मतलब है उस दुष्टता की सन्तति को आगे बढ़ाना . हम किसके अनुयायी और अनुगामी बनना चाहते हें , दुष्टों के या सज्जनों के ?


हम क्या हें और अपने आपको क्या समझते हें ?
एक आइना ! जो आपको हकीकत से रूबरू करता है 

किसी की दुष्टता का जबाब दुष्टता से देने का मतलब है उस दुष्टता की सन्तति को आगे बढ़ाना .
हम किसके अनुयायी और अनुगामी बनना चाहते हें , दुष्टों के या सज्जनों के ?
कहने को तो सभी यही कहेंगे कि सज्जनों के ; पर जब करने की बारी आती है तो उल्टा कर बैठते हें .
तब हम फिर उसे ही क्यों दोष देते हें जिसका हम अनुशरण कर रहे हें ? हम स्वयं भी तो दुष्ट ही हें , हम भी तो दुष्टता का ही व्यवहार कर रहे हें .
हम कहेंगे कि नहीं हम तो उस दुष्ट को सबक सिखाने के लिए उसकी दुष्टता का जबाब दे रहे हें वर्ना हम तो बड़े सज्जन हें ; पर हम भूल जाते हें कि वह कथित दुष्ट भी तो किसी अन्य दुष्ट को सबक सिखाने के चक्कर में उसकी दुष्टता का वाहक बन बैठा है अन्यथा तो वह भी हम जैसा ही तथाकथित सज्जन (दुर्जन)ही है .
इस प्रकार हम सदा से ही दूसरों के कंधे पर रखकर बन्दूक चलाते आये हें और दुष्टता की परम्परा चला रहे हें .
हम दुष्ट तो हें ही बेइमान भी हें , हम दुष्टता तो करना चाहते हें पर दुष्ट कहलाना नहीं चाहते . 
हम हें कुछ और और दिखना कुछ और चाहते हें क्या इसे ही ढोंग नहीं कहते हें ? क्या यही हमारा छल नहीं है .
दुष्टता के साथ ही इस बेइमानी की भी परम्परा चल रही है और झूंठ की भी क्योंकि हम हें तो दुष्ट पर अपने आपको सज्जन बतलाते हें .
क्या हमारी यह वृत्ति हमारी मक्कारी नहीं है ?
फिर दोगलापन और किसे कहते हें ?
क्या ऐसा करके हम समाज के साथ धोखा नहीं करते हें ?
यदि आप अपेक्षा के विरुद्ध व्यवहार करते तो यही तो विश्वासघात कहलाता है .
क्या किसी के साथ दुष्टता का व्यवहार करना हमारी निष्ठुरता नहीं है , क्या यह क्रूरता भरा व्यवहार नहीं है ?
क्या ऐसी दूषित परम्परा का वाहक बनना हमारा अविवेक नहीं है ?
क्या जैस एको तैसा की नीति हमारी छुद्रता और अनुदारता नहीं है ?
क्या यह व्रत्ति अमानवीय नहीं  ? 
क्या यह हमारे अन्दर छिपी पशुता नहीं है ?
यदि हम सज्जन हें और सज्जन ही बने रहना चाहते हें ; मात्र खुद ही नहीं वल्कि अपनी परम्परा को भी सज्जन ही बनाए रखना चाहते हें तो सभी से सज्जनता का व्यवहार ही करें , सज्जनों से भी और दुष्टों से भी .
वही बात , कि यदि दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता है तो सज्जन अपनी सज्जनता क्यों छोड़ दें ?
"जैसे को तैसा " नहीं पर " जैसे हो तैसा " यह सही नीति है .
यदि आप वैसा नहीं करते हें ,जैसे कि आप हें तो आप वैसे ही बन जाते हें जैसा आप करते हें .
फिर भी यदि आप ऐसा करते हें तो अपने आप को धोखे में न रखें ! अपने आप को आईने में देखकर निर्णय करें कि आप सचमुच क्या हें .
यदि अभी भी आप इस तथ्य को समझ नहीं पाते हें तो आप दुष्ट तो हें ही पर बड़े मूर्ख भी हें .

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