Saturday, March 2, 2013

जगत या तो स्वनिर्मित एवं स्वयं संचालित हो सकता है या फिर कोई एक , मात्र एक सर्वशक्तिमान इसका निर्माता और कर्ता-धर्ता हो सकता है .

जगत या तो स्वनिर्मित एवं स्वयं संचालित हो सकता है या फिर कोई एक , मात्र एक सर्वशक्तिमान इसका निर्माता और कर्ता-धर्ता हो सकता है .
जगत में सर्वशक्तिमान कोई दिखाई देता नहीं .
कितनी विवशताएँ , कितनीं बिसंगातियाँ दिखाई देतीं हें हर ओर ?
कितने ईश्वर दिखाई देते हें हर ओर , और वह भी एक दुसरे के विरोधी .
आखिर कोई सर्वशक्तिमान कैसे किसी विरोधी को वर्दाश्त करेगा ? क्यों विरोधी का सृजन करेगा ?
क्यों ईशनिंदक बनाएगा ?
क्यों दुष्टों की स्रष्टि करेगा ?
क्यों सज्जनों को परेशान होने देगा ?
दंड विधान क्यों ?
वह किसी से अपराध करबायेगा ही क्यों ?
पहिले अपराध करबाए और फिर दण्डित करे , यह तो छल है , चीटिंग है . वह भी अपनों से ही , अपने ही बालकों से .
फिर सिर्फ अपराध करना ही तो नहीं किसी से अपराध करबाना भी तो अपराध है , तो फिर दुनिया में हर अपराधी द्वारा किये गए अपराध के लिए जगत का कर्ता ईश्वर अपराधी होगा .
वह जगत में विनाश क्यों करेगा ?
विनाश होता रहे , लोग हाहाकार करते रहें और वह कैसे देखता रह सकता है ?
उसके द्वारा बनाए गए अन्य जीवों का भक्षण कोई करे ऐसा विधान वह क्यों करेगा ?
संख्या नियंत्रण के लिए ?
अरे ! नियंत्रित रखना है तो बनाए ही नहीं ?
अरे ! जब जीवों की स्रष्टि की है तो पर्याप्त भोजन क्यों नहीं बना देता है वह ?
भोजन नहीं बना सकता है तो भूंख ही मिटादे ?
यदि किसी को भूंख ही न होगी तो उसकी स्रष्टि में क्या कमी रह जायेगी ?
और फिर इन रोगों की भला क्या जरूरत थी ?
अरे ! कोई साधारण से साधारण आदमी भी कोई रचना करता है तो वह अच्छी से अच्छी करना चाहता है , तब फिर कोई सर्वशक्तिमान क्यों ऐसी भूलों से भरपूर स्रष्टि का सर्जन करे ?
क्यों नहीं वह सर्व साधन संपन्न , सुन्दरतम जगत की रचना करे ?
यह तो सिर्फ मजबूरियाँ ही हो सकती हें और कुछ नहीं .
और कोई मजबूर सर्वशक्तिमान नहीं हो सकता , सर्वशक्तिमान मजबूर नहीं हो सकता .
कोई कहे की यह सब उसने कौतूहल के लिए किया है , विविधता के लिए किया है .
कौतूहल किसलिए ?
क्या सुख के लिए ?
किसके सुख के लिए ? क्या ईश्वर दुखी है , वेचैन है ? जो कौतूहल में आनंद ढूँढता फिर रहा है ? वह भी अपनी ही स्रष्टि को दुखी करके ?
क्या हमारे कौतूहल के लिए ?
अरे क्या कोई अपनी दुर्दशा में कौतूहल का आनंद ले सकता है ?
फिर यदि वह हमें आनंद ही देना चाहता है तो सीधे ही क्यों नहीं दे देता है ?

इसलिए में कहता हूँ की जगत स्वनिर्मित और स्वयं संचालित है , इसका निर्माता और संचालक कोई नहीं .

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