श्वांसें तो आवश्यक हें ही हें , यदि श्वासें हें तो जीवन चलता
नि:श्वासें भी आवश्यक हें ,जिनसे श्वासों को आश्रय मिलता
हम उपकृत हें निश्वांसों से , जिसमें काया के बिष घुलते हें
तब ही तो श्वांसों से जीवन के , अमृतमय पल पल मिलते हें
यदि निश्वांस ( उच्छ्वास ) हमारे फेफड़ों को खाली नहीं करेगी तो हम फिरसे सांस कैसे ले पायेंगे ? इसलिए निश्वांस भी उतना ही जरूरी है जितना की श्वांस .
यदि श्वांस हमारे जीवन के लिए नई ऊर्जा लेकर आती है तो उच्छ्वास हमारे शरीर को जहर से मुक्त करती है .
तू चाहे स्वीकार करे या न करे , यह तो वस्तु का स्वभाव है , हर श्वांस के साथ उच्छ्वास भी आयेगी ही आयेगी , तू चाहे तो भी इसे रोक नहीं सकता है .
यह तो हमारी गंदी आदत है की हम यूं ही विवेकहीन होकर मीन्केख करते रहते हें .
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