तुझे पूँछ चाहिए ?
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
अरे भोले ! यह वो पूँछ ही है जो तुझे बांधे रखती है , लोग तुझे पूंछते हें और तू उस पूँछ में अटका रहता है .
लोग तुझे पूंछते इसलिए हें कि उन्हें तुझसे आशाएं बनी रहती हें
आपसे लोगों की आशाएं और अपेक्षाएं आपको बांधे रखती हें .
यदि बंधन मुक्त होना है तो आशाओं और आकांक्षाओं को त्यागना होगा .
तुझसे आशा होने पर लोग तुझसे चिपके रहते हें और तुझे उनसे आशा होने पर तू उनसे चिपका रहता है .
चिपका कोई भी किसी से रहे , दोनों ही हालात में दोनों एक दुसरे से बंधे रहते हें .
यह तो सिर्फ सिपाही का भ्रम ही है कि उसने हथकड़ी से मुजरिम को बाँध रखा है , पर क्या वह खुद भी बंधा नहीं है ?
क्या अब भी तुझे पूँछ चाहिए ?
क्या तुझे मुक्त नहीं होना है ?
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