अरे भोले ! तू इनका मालिक है या चौकीदार ?
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
ज़रा निष्पक्ष होकर इमानदारी से विचार कर ! भ्रम पालकर अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बना फिरता है। एक के बाद एक , तेरे जैसे कितने आये , अपने आप को सम्राट समझते और कहते रहे और फिर एक दिन इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिए गए , फिर भी तू नहीं समझा /
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
अब तो सच्चाई समझले , स्वीकार करले भोले !
जब उसे कोई दूसरा काम सोंप दिया जाता है तो वह उस काम में लग जाता है .
इस प्रकार उसकी ड्यूटी बदलती रहती है पर वह वस्तु अविचलित उसी स्थान पर बैसी ही बनी रहती है .
हमारी धन संपत्ति और हमारे बीच कुछ इसी प्रकार का रिश्ता तो है।
जमीन - जायजाद , फेक्ट्री - मकान , सोना - चांदी ये सब जो हें , जैसे हें वैसे ही बने रहते हें , ये सब अविचलित हें बस हम जैसे इनके रक्षक बदलते रहते हें .
आज हम अपने आप को इनका स्वामी मानते हें और इनकी रक्षा या देखभाल में व्यस्त रहते हें , कल ये बस्तुएं हमें अपनी सुरक्षा की ड्यूटी से मुक्त कर देती हें और किसी और को इस काम में लगा देती हें , ये वैसी की वैसी बनी रहती हें इनके तथाकथित स्वामी ( हमलोग ) बदल जाते हें .
ये दिल्ली , ये दिल्ली का साम्राज्य कोई आज का नहीं है , कितना प्राचीन है ये।
कितने आये जिन्होंने अपने आपको इस दिल्ली का स्वामी होने का भ्रम पाला और एक दिन चले गए , जाने कहाँ , पता नहीं . पर दिल्ली जहां की तहां है।
वे दिल्ली के मालिक थे या दिल्ली उनकी ?
ये सोना - चांदी जो आपके पास है यह कोई आजका नहीं है , यह तो अनादि से है और अनंत काल तक रहेगा , कभी नष्ट नहीं होगा पर आज तू इसका स्वामी बनता है कल कोई और बन जाएगा , ऐसे तो कितने ही आये और चले गए।
वे आये और चले गए ये ऐसे ही बने रहे , अब आप ही सोचिये कि कौन स्वामी है और कौन क्या है ?
अरे ओ ! अपने मुंह मियाँ मिटठू बनने बाले , अब अपना यह भ्रम दूर कर , तू न तो आज तक इनका स्वामी बना है और न ही उपभोक्ता , तूने तो मात्र भ्रम पाला है।
तू भ्रम पाल कर दुखी हुआ है , अपना यह भ्रम दूर कर और सुखी हो जा , तेरा कल्याण होगा।
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