Monday, August 12, 2013

कर्मठ लोग जहां हें , जैसे हालात हें उनमें से ही अपना मार्ग खोजते हें .

जो यह सोचते हें कि  " यदि ऐसा होता तो मैं ऐसा करता या ऐसा हो जाए तो मैं ऐसा करदूं " वे शेखचिल्ली जैसे ख़्वाब देखते हें  . 
कर्मठ लोग जहां हें , जैसे हालात हें उनमें से ही अपना मार्ग खोजते हें  

" यदि ऐसा तो ऐसा " वाले लोग उन कामों को तो विधि के हवाले कर देते हें जिनमें सचमुच कुछ किया जाना है , कुछ करने की जरूरत है और वह काम अपने जिम्मे रख लेते हें जिसमें कुछ करने को बचता ही नहीं है।  जैसे कि यदि मेरे पास एक करोड़ रूपये हों तो मैं १० लाख तुझे दे दूं। 
अब यदि १ करोड़ तेरे पास हो ही गए तो करने को बचा ही क्या है ? बर्बाद ही तो करना है , सो तो हो ही जाएगा , ऐसे नहीं तो बैसे  . 
असली काम तो एक करोड़ जुटाना है सो वह तूने विधि के हवाले कर ही दिया है , उसमें तो तुझे कुछ करने की न चाहत है और न ही क्षमता।  
तू तो महल बन जाने के बाद मात्र झंडा फहराने का इरादा रखता है। 

दिल्ली से लखनऊ जाने का रास्ता मालूम होना एक सूचना मात्र है जिसके सहारे लखनऊ नहीं पहुंचा जा सकता है , यदि हमें लखनऊ जाना है तो हम जहां खड़े हें वहां से लखनऊ जाने का मार्ग और साधन जानना और जुटाना आवशयक है।  

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