Friday, August 9, 2013

कभी इधर , कभी उधर , कैसे करबटें बदलते हें लोग

क्या बदलते रहेंगे इस ही तरा,क्यों नहीं बदलते हें लोग
(कविता)
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

कभी इधर, कभी उधर , कैसे  करबटें  बदलते  हें  लोग 
क्या बदलते रहेंगे इस ही तरा,क्यों नहीं बदलते हें लोग

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