रानी से राजमाता तक : कैसा है यह सफरनामा
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
उसका घर पर छाजाने का यह क्रम किचन से शुरू होता है , पहिले पहल वह किचन में मात्र अपने उपस्थिति दर्ज कराने भर से शुरुवात करती है और फिर शुरू होता है किचन पर अपनी पकड़ मजबूत करने का धैर्य भरा सफ़र।
किचन पर बहू की पकड कितनी और कितनी मजबूत हो पाई है इसका इंडीकेटर है डायनिंग टेबिल पर परोसी जाने वाली बानगियों और उनके परोसे जाने की विधि ( जिनमें वर्तन और क्रोकरी भी शामिल है ) में परिवर्तन।
जहां एक ओर पति पर अपनी पकड़ मजबूत करने की शुरुवात पलंग से होती है , वहीं दूसरी ओर सास-श्वसुर , देवर , जेठ और अन्य परिजनों पर पकड बनाने का माध्यम किचन और डायनिंग टेबिल है।
जिस दिन ड्राइंग रूम में भी बहू की छाया दिखाई देने लगे तो समझ लेना चाहिये कि अब वह सही मायनों में गृह स्वामिनी बन गई है।
पलंग से वह पति के ह्रदय में स्थापित होती है , किचन से परिवार के ह्रदय में और पालने से वह खानदान में स्थापित हो जाती है , सदा के लिए।
पालना उसके सौरभ को अब आने वाली कई पीढ़ियों को महकाने का माध्यम जो बन जाता है।
पति की निगाहों में भी अपने बच्चे की मां का दर्जा अपनी पत्नी के दर्जे से बहुत ज्यादा बजनदार होता है , अत्यंत गहरा और अटूट।
पलंग यदि उसे रानी का दर्जा दिलाता है तो पालना राजमाता का।
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