Wednesday, August 6, 2014

सत्य को स्वीकारना ही सकारात्मकता ( positive attitude ) है और सच्चाई को झुठलाना ही नकारात्मकता ( negative attitude ) . और इसके उलट मानना मूर्खता और अज्ञान .

अरे भोले ! मूर्खों के संसार में बसने का नाम या शेखचिल्ली के ख़्वाब देखने का नाम positive attitude (सकारात्मकता) नहीं हुआ करता . जो जैसा है उसे वैसा स्वीकार करना positive attitude (सकारात्मकता) है और उसे वैसा न मानकर अन्यथा मानना तो मूर्खता है , नकारात्मकता (negativity) है , अज्ञान है .
क्या विष्टा को स्वर्णिम पेकिंग में पैक कर देने से वह अमृत बन जायेगी , बन सकती है ?
गलत को गलत मानना सही है या गलत को सही मानना गलत है ?
तो सकारात्मकता क्या हुई ?
गलत को गलत कहना , यही न ?
गलत को सही कहना तो नकारात्मकता हुई !
कुछ लोगों ने तो “ गलत “ शब्द को जबान पर लाने को ही नकारात्मकता ( negetivity ) मान लिया है और इसलिए वे सकारात्मकता के व्यामोह में और नकारात्मकता के डर से “ गलत “ नाम का शब्द भी जवान पर लाना नहीं चाहते , झूंठे को झूंठा और मक्कार को मक्कार कहने से डरते हें .
यदि यह मिथ्या नहीं है तो फिर मिथ्यात्व किसे कहेंगे ?
यदि हम पर युद्ध थोप दिया गया हो और हमारी शक्ति कम हो , हम कमजोर हों , तो युद्ध की रणनीति बनाते वक्त , अपने core group में क्या हम अपनी कमजोरी की चर्चा और व्याख्या नहीं करेंगे ? क्या हम अपने आगत सर्वनाश की आशंका व्यक्त नहीं करेंगे ? यदि नहीं करेंगे तो उससे बचने का उपाय कैसे खोजेंगे ?
यदि हमें केंसर हुआ हो तो क्या positive attitude के चक्कर में हम केंसर शब्द का उच्चारण ही  नहीं करेंगे , अपने केंसर रोग को स्वीकार ही नहीं करेंगे ? तब फिर उसका उपचार कैसे करेंगे ?
क्या ज़िंदा बने रहने के मिथ्या आत्मविश्वास के साथ जहर खाने से हम मरेंगे नहीं ?
मैदाने जंग में सैनिकों का उत्साह बढाने के लिए अपनी शक्ति , बहादुरी और वलिदान की महानता की डींगें हाकना और बात है और रणनीति बनाते समय तथ्यों की जानकारी , स्वीकृति और चर्चा करना अलग बात है .
अपने आप को भ्रम में रखने से कठोर हकीकतें बदला नहीं करती हें .
सत्य को स्वीकारना ही सकारात्मकता ( positive attitude ) है और सच्चाई को झुठलाना ही नकारात्मकता ( negative attitude ) . और इसके उलट मानना मूर्खता और अज्ञान .

attitude की positivity सकारात्मकता हमारे विचारों और हमारे व्यवहार के सन्दर्भ में होती है , तथ्यों की जानकारी के सन्दर्भ में नहीं . सामने वाले के व्यवहार का सत्य तथ्यों पर आधारित आकलन करने के बाद हम उसके साथ कैसा व्यवहार करें इसका निर्णय हमारे positive या negetive attitude से प्रभावित होता है .
तथ्यों की व्याख्या तथ्यों पर आधारित होती है हमारे रुख पर नहीं .

सावधान ! positive attitude के व्यामोह में हम अपने आपको छलने से बचें .

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