जन्मदिन आता है ,हम खुशियाँ मनाते हें .
किस बात कि खुशी ?
जीवन का एक बर्ष और बीत गया , व्यर्थ ; इस बात की खुशी ?
मैं जीवनभर जिन्दगी में जीवन की खोज करता रहा पर असफल ही रहा , जीवन तो न मिला और जिन्दगी ही लुट गई . एक एक पल बीतता और मैं एक और कदम मृत्यु की ओर बड जाता हूँ , इस बीच निरन्तर बिछुड़ते हमराही मुझे अपनी नियति के दर्शन कराते रहते हें .
वक्त तो बहुत तेजी से गुजरता है और कभी ठहरता भी नहीं है और मैं हूँ कि प्रत्येक डग पर ठहर कर जीवन का अर्थ खोजने का प्रयास करता हूँ इस तरह मैं पीछे छूट जाता हूँ और जिन्दगी आगे बढ़ जाती है .
बिडम्बना यह है कि मैं यहाँ तो ठहर नहीं सकता और मुझे पहुंचना कहाँ है , मार्ग क्या है , मुझे मालूम नहीं .
इसी उहापोह में ये जीवन बीत रहा है , मैं बूढा हो रहा हूँ पर मेरे विचार परिपक्व नहीं हो पारहे हें , इसी क्रम में जीवन का अधिकतम समय तो बीत ही चुका है , क्या अब भी मैं इस जीवन में पूर्णता पा सकूंगा ?
खोजा किया मैं जिन्दगी , और जीवन खो गया
बीता हुआ प्रत्येक पल , यहाँ मृत्यु बो गया
खोजा जिसे बो ना मिला , ऐसा हुआ ये बाकया
इस ओर देखा ये गया , उस ओर देखा बो गया
मैं ठिठकता प्रत्येक डग पर , घडी पर रूकती नहीं
मैं अर्थ खोजूं जिन्दगी का , नजर पर टिकती नहीं
कुछ समझ पाऊं उससे पहिले,बीत जाती है ये पारी
जीवन गुजर जाता है लेकिन,जिन्दगी मिलती नहीं
ठहर तो अब मैं गया हूँ , पर यहाँ है मंजिल कहाँ
कहाँ है गन्तव्य मेरा , मुझको पहुंचना है जहां
ना मुझे वह मार्ग दिखता,ना लक्ष्य तक पहुंचे नजर
ना तो आगे बढ़ सकूं मैं , ना मैं ठहर सकता यहाँ
बस इसी उहापोह में , लम्हे फिसलते जा रहे हें
बृद्ध तो हम हो रहे हें , पर प्रौढ़ता ना पा रहे हें
अधिकतम तो लुट चुका है , शेष भी लुट जाएगा
क्या अंतत: मेरा ये जीवन , पूर्णता को पायेगा
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