मेरा चिंतन मात्र कहने-सुनने के लिए नहीं, आचरण के लिए, व्यवहार के लिए है और आदर्श भी. आदर्शों युक्त जीवन ही जीवन की सम्पूर्णता और सफलता है, स्व और पर के कल्याण के लिए. हाँ यह संभव है ! और मात्र यही करने योग्य है. यदि आदर्श को हम व्यवहार में नहीं लायेंगे तो हम आदर्श अवस्था प्राप्त कैसे करेंगे ? लोग गलत समझते हें जो कुछ कहा-सुना जाता है वह करना संभव नहीं, और जो किया जाता है वह कहने-सुनने लायक नहीं होता है. इस प्रकार लोग आधा-अधूरा जीवन जीते रहते हें, कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते हें.
Thursday, September 25, 2014
Parmatm Prakash Bharill: यदि तुझे पाप त्यागना है तो अभिप्राय की वासना का त्...
Parmatm Prakash Bharill: यदि तुझे पाप त्यागना है तो अभिप्राय की वासना का त्...: हमारे अभिप्राय में पड़ा धन का प्रेम ही मूल पाप है , इसके फलस्वरूप होने वाली धन्धे व्यापार की गतिविधियाँ और तत्सम्बन्धी चिन्तन तो उक्त अभिप...
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