बात चाहे लोक व्यवहार की हो
या परमार्थ की , सुख और शांति का उपाय एक ही है कि पर से द्रष्टि हटाओ .
दुनिया में पर ( पराये ) अनंत
हें , वे अपने स्वयं के अनुरूप व्यवहार करते हें और इस बात की कम ही संभावना है कि
उनका व्यवहार आपके अनुकूल हो , तब उनका व्यवहार व्यर्थ ही आपको दुखी करेगा .
पराये अनंत , व्यवहार अनंत और
इसलिए दुःख भी अनंत .
यदि सुखी रहना है तो बेहतर
है कि अपने आप में ही सीमित रहें .
अन्यों की ओर न तो देखें ,
न उन पर ध्यान दें और न ही उनका चिंतन करें .
अपने आप में रहें , स्वयं
का चिंतन करे , आप सुखी होंगे .
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