Monday, May 4, 2015

कल्याण चाहता है तो सीमाओं को तोड़कर सच्चे वस्तुस्वरूप का निर्णय कर

कल्याण चाहता है तो सीमाओं को तोड़कर सच्चे वस्तुस्वरूप का निर्णय कर
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
क्या यह तेरे लिये हितकारी, उचित व तर्क संगत है कि धर्म के नाम पर मात्र अपनी पूर्वाग्रह युक्त मान्यताओं व परम्पराओं से ही बंधा रहे ? 
सत्ता का प्रेमी नेता अपना या पराया दल नहीं देखता, वोटर की जाति या धर्म नहीं देखता, अमीर-गरीब, छूत-अछूत, देशी-परदेशी कुछ नहीं देखता है, उसकी द्रष्टि सिर्फ वोट पर और सत्ता पर रहती है, जहां से यह मिले बहाँ से पाने के लिए तत्पर रहता है.
अपने आपको किसी भी सीमा में सीमित नहीं करता है.
धन का प्रेमी व्यापारी भी यह सब कुछ नहीं देखता है और हर उस व्यक्ति से व्यापार करने के लिए तत्पर रहता है जिससे धन मिले.
यहाँ भी अपने को किसी सीमा में नहीं बाँधना चाहता है.
यदि धर्म के नाम पर तू सिर्फ अपनी कुल की परम्परा, जाति, सम्प्रदाय या पूर्व मान्यताओं के बाड़े में ही कैद रहना चाहता है तो तू धर्मात्मा नहीं है, आत्मार्थी नहीं है, मोक्ष का अभिलाषी नहीं है, धर्म के प्रति गंभीर नहीं है.
तू आज जहां जन्मा है उस कुल की परम्परा को सच्चा-अच्छा मानकर पालता है, यदि तू उसके विपरीत मान्यता वाले कुल में जन्म लेलेता तो क्या उसे सच्चा मान लेता ?
तो क्या दो परस्पर विरुद्ध मान्यताएं भी सच हो सकती हें ? 
तब तो तेरा कल्याण संभव नहीं है क्योंकि परम्पराओं के पालन का जो परिणाम हो सकता है वह तो सामने है. यदि तू संसार की परम्परा का पालन करेगा तो संसार में ही तो रहेगा, मोक्ष कैसे जाएगा?
यदि तू अपना कल्याण चाहता है तो सारी सीमाओं को तोड़कर सच्चे वस्तुस्वरूप का निर्णय कर, तेरा कल्याण होगा.    

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