Saturday, August 1, 2015

परमात्म नीति - (11) - क़ानून का पालन सर्वत्र, सदा और सर्वथा न्यायपूर्ण नहीं होता.

परमात्म नीति - (11)


- क़ानून का पालन सर्वत्र, सदा और सर्वथा न्यायपूर्ण नहीं होता.







-  क़ानून का पालन सर्वत्र, सदा और सर्वथा न्यायपूर्ण नहीं होता, जगत की अदालतें क़ानून का पालन कर पाती हें या नहीं यह तो प्रथक चिंतन का बिषय है पर वे न्याय करने के लिए तो बनीं ही नहीं हें, वे तो मात्र क़ानून का पालन (अपनी सीमाओं में) करने-कराने के लिए बनीं हें, इसलिए जगत में (शासन से) न्याय की अपेक्षा रखना ही व्यर्थ है.
क़ानून बनाना एक बात है और उसकी सटीक व्यवस्था प्रस्तुत करना दूसरी. 
क़ानून के उलंघन का मामला जब न्यायालय के सामने आता है तो वह वकीलों की सुविधाभोगी दलीलों के सामने दम तोड़ देता है.
जो न्याय पाने के लिए गरीब सामान्यजन को मंहगे वकीलों के आश्रित रहना पड़े वह न्याय नहीं अन्याय ही है.

जगत में न्याय की स्थापना का कार्य अपनी सीमाओं में परिवार, समाज और धर्म ही कर सकता है शासन तो कतई नहीं.


उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.


घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.
यह क्रम जारी रहेगा. 

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