परमात्म नीति - (14)
हमारा व्यवहार अन्य के व्यवहार का नियंता नहीं है.
- हम अपनी स्वयं की व्रत्ति, विवेक व परिणति के अनुरूप व्यवहार करते हें व प्रत्युत्तर में अन्य लोग उनकी व्रत्ति, विवेक व परिणति के अनुरूप.
तू किसी के साथ जो व्यवहार करता है, अच्छा या बुरा, उसका उत्तरदायी तू स्वयं है; इसके विपरीत कोई तेरे साथ कैसा व्यवहार करे यह उनकी वृत्ति, विवेक और परिस्थिति पर निर्भर करता है.
अपने सद्व्यवहार के प्रत्युत्तर में तू किसी से अपनी अपेक्षा के अनुरूप व्यवहार चाहे तो यह तेरा ही अविवेक है क्योंकि उसकी परिणति का नियंता वह स्वयं है तू नहीं.
उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.
घोषणा
यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.
यह क्रम जारी रहेगा.
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