Wednesday, August 5, 2015

परमात्म नीति - (15) - - जगत में कौन है जो एक-एक कर अपने सभी अपनों को खो नहीं देता है?

परमात्म नीति - (15)

- जगत में कौन है जो एक-एक कर अपने सभी अपनों को खो नहीं देता है?









- जगत में कौन है जो एक-एक कर अपने सभी अपनों को खो नहीं देता है, मात्र देह परिवर्तन या क्षेत्र परिवर्तन से ही नहीं वरन काल और भाव (अन्तरंग परिणाम, भावनाएं) परिवर्तन से भी. चाहे वे माता-पिता हों, भाई-बहिन हों, पति-पत्नी हों या पुत्र-पुत्री यहाँ तक कि यह देह भी.
मगर जब तक यह प्रक्रिया सम्पूर्णत सम्पन्न हो सके यह व्यक्ति अपना सम्पूर्ण जीवन भी लगभग खो ही चुका होता है.
क्या वे सचमुच अपने थे?
नहीं ! यदि अपने होते तो खो कैसे जाते ?
यदि समय रहते यह सत्य समझ में आ जाए, स्वीकृत हो जाए तब भी क्या हम इसी तरह जियेंगे, इसी तरह व्यवहार करेंगे ?
तबतो हमारी जीवन शैली कुछ अन्य ही हो एवं हम सार्थक जीवन जी सकते हें.






उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.


घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.
यह क्रम जारी रहेगा. 

No comments:

Post a Comment