Monday, August 31, 2015

परमात्म नीति – (37) सल्लेखना यदि आत्महत्या है तो क्या क़ानून की नजर में यह आत्महत्या की भावना नहीं है?



- परमात्म नीति – (37)

वेचारा असहाय क़ानून - सल्लेखना यदि आत्महत्या है तो -

- क्या क़ानून की नजर में यह आत्महत्या की 

भावना नहीं है?









क्या म्रत्युदण्ड से दण्डनीय अपराध करना, सरकार को अपनी ह्त्या के लिए बाध्य करना नहीं है?
क्या यह आत्महत्या का प्रयास नहीं है?
क्या म्रत्युदंड देकर सरकार उसे आत्महत्या करने में सहायता नहीं कर रही है?

यह जानते हुए भी कि इस कृत्य का दंड म्रत्युदंड है यदि कोई व्यक्ति वह कृत्य करे और फिर आत्मसमर्पण करके अपना अपराध स्वीकार भी करले, अपना बचाव भी न करे तो क्या इसे आत्महत्या का प्रयास नहीं माना जाना चाहिए?
और क्या उसे म्रत्युदंड देकर सरकार को उसकी आत्महत्या में सहायक बनना योग्य है?
भगतसिंग ने क्या यही नहीं किया था?
असेम्बली में बम फेककर आत्मसमर्पण कर दिया, अदालत में सफाई न देकर अपराध स्वीकार कर लिया और अंतत: क्षमायाचिका करने से भी इनकार कर दिया.

उन्होंने लिखा था कि-

"मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता।------------------

जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हरगिज नहीं हो सकता---

--------आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं 

फांसी से बच गया तो वो जाहिर हो जाएंगी -----------------------

मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे खुद पर 

बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है। 

कामना है कि यह और नजदीक हो जाए।"


क्या क़ानून की नजर में यह आत्महत्या की भावना नहीं है?

वेचारा असहाय क़ानून.

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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 

- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 


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